पीके फिल्म का निष्कर्ष आपको याद है...?
पीके फिल्म इस अंतिम दृश्य के साथ समाप्त हो जाती कि "मुसलमान कभी धोखा नहीं देता" सरफराज (अब्दुल) धोखेबाज नहीं हैं।
'द केरला स्टोरी' का निष्कर्ष आपको पता है? "अब्दुल धोखा देने के लिए ही प्यार करता है।" यह दोनों फिल्में एक दूसरे से एकदम विपरीत हैं।
जैसे जादूगर अपने खेल में पहले तो कबूतर, टॉर्च, कोल्ड ड्रिंक एक के बाद एक वस्तु निकालता जाता है, आपको लगता है यह जादू दिखा रहा है, लेकिन वास्तव में उसका मुख्य उद्देश्य अंतिम में दृष्टिगोचर होता है जब वह अंत में आपके सामने पैसे के लिए झोली फैला देता है।
जादूगर का उद्देश्य आपको जादू दिखाना नहीं अपितु जादू के नाम पर अपने भोजन पानी की व्यवस्था करना हैं।
ऐसे ही पीके फिल्म का जादूगर आमिर खान हिन्दुओं की कुछ रूढ़िवादी मान्यताओं, कुरीतियों, अंधविश्वास को स्पष्ट करने का जादू दिखाता है और उससे आप फूलकर कुप्पा हो जाते हैं। फिर अंत में जादूगर आमिर खान अपना असली गेम खेलता है जो कि उसका मुख्य उद्देश्य था कि "मुसलमान कभी धोखा नहीं देता" और आपको थियेटर से निकलते निकलते अंतिम निष्कर्ष ही स्मरण रहता है कि मुसलमान कभी धोखा नहीं देता। यह सब साधु संत ही हमारे समाज में मुसलमानों के विरोध में विषैला वातावरण निर्मित कर रहे है।
साधु-संतों प्रचारकों, विद्वानों के द्वारा लव जिहाद के विरोध में फैलाई जा रही जागरूकता से परेशान होकर ही राजकुमार हीरानी और आमिर खान जैसे लोगों ने हिन्दू लड़कियों का ब्रेनवाश करने के लिए ही पीके फिल्म की ऐसी पटकथा लिखी, जिसमें संतों को विलेन और अब्दुल को हीरो प्रमाणित किया जा सके जो कि फिल्म का मुख्य उद्देश्य था और उसमें वे बहुत सीमा तक सफल भी रहे।
परन्तु पीके द्वारा फैलाई गई भ्रांति का निवारण 'द केरला स्टोरी' के द्वारा बहुत ही उत्तम ढंग से किया गया है।
सभी समाज सुधारक लोग हिन्दू लड़कियों को जितना जागरूक नहीं कर पाए उससे कहीं ज्यादा अकेली फिल्म पीके ने लव जिहाद को प्रोत्साहित किया।
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और अब ऐसे ही एक ओर सभी सनातनी प्रचारक जितना कार्य करेंगे उससे कहीं अधिक एक ओर अकेली फिल्म 'द केरला स्टोरी' जागरूक करेगी, क्योंकि लोग आजकल स्क्रीन से ही बहुत कुछ सीखते हैं।
पीके द्वारा फैलाए गए लव जिहाद के कीड़े को अपने फिनायल से तडपा- तड़पाकर मारने वाली फिल्म सिद्ध होगी।
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