दो दिन पहले तक प्रेस फ्रीडम का र-रोना करने वालों को आज एक पत्रकार की झूठी गिरफ्तारी पर सांप सूंघ गया है। दिल्ली की पत्रकार को लुधियाना में किसी की जाति कैसे पता चल गई जो वो जातिसूचक गालियां देगी?
लवणासुर अपनी अय्याशी की पोलखोल से इतना डर गया कि फर्जी रैश ड्राइविंग के केस में एक पत्रकार को जेल भेज गया।
उसके टुकड़ो पर पलने वाले पत्रकायर सब चुप हैं। ऊपर से लवणासुर के अंडे इस टाइम्स नाउ की महिला पत्रकार को भाजपा का पत्रकार बता रहे हैं।
कल पहले तो इस महिला को पुरुष पुलिस वाले किडनैपिंग स्टाइल में उठा ले जाते हैं। शाम तक इसकी सूचना तक नही देते और फिर रात में इसपर केस लगा इसे जेल भेज देते हैं। मिंया लार्ड भी इस देश के ऐसे ही हैं जिन्हें ये कुछ नही दिखता और वो इसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज देते हैं।
टुच्चा लवणासुर इसीलिए छाती कूटता था कि दिल्ली पुलिस उसके हाथ मे नही है। उसे असल मे इसीलिए पुलिस चाहिए थी ताकि वो अपने सारे कुकर्म इस तरह डराकर छुपा सके।
वो दिल्ली का दरबारी एडिटर्स गिल्ट भी पता नही किस बिल में छुप गया जो बीबीसी जैसों के लिए तुरन्त कपड़े फाड़ रोने लगता है।
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