महाभारत युद्घ जीतने के बाद पांडव वीर अर्जुन बार-बार अपने गांडीव और अपनी भुजाओं की तरफ बड़े गुमान से निहार रहे थे।
कृष्ण ने पूछा क्या कर रहे हो पार्थ? अर्जुन ने कहा: सोच रहा हूँ कि मेरी इन भुजाओं से कैसे कौरव वीर मारे गए।
कृष्ण बोले: युद्घ में सब लड़े। तुम भी, तुम्हारे भ्रातागण भी और तुम्हारी सेना के श्रेष्ठ धनुर्धर शिखंडी भी।
अब अर्जुन को यह बात लग गई बोले: आपको मेरी वीरता दिखी नहीं कृष्ण! या आप मेरे पौरुष को ललकार रहे हैं। यूँ भी आपके यादव वीर तो कौरव की तरफ थे और आप हमारी तरफ रहे भी तो क्या आपने धनुष तक तो उठाया नहीं।
श्रीकृष्ण अर्जुन की इस गर्वोक्ति से कुछ दु:खी हुए फिर बोले: देखो अर्जुन हमारे घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक सबसे ऊँचे स्थान से महाभारत का युद्घ देख रहा था। उसे पता होगा कि दरअसल असली वीर कौन था?
वे दोनों बर्बरीक के पास पहुंचे। भगवान ने उससे पूछा बेटा बर्बरीक तुम्हें इस महाभारत में कौन सबसे अधिक वीर और विजेता प्रतीत हुआ?
बर्बरीक बोला: भगवन मैने सिर्फ एक ही व्यक्ति को युद्घ करते देखा जो पीतांबर पहने, सिर पर मोर मुकुट बांधे अपने सुदर्शन चक्र से सारे योद्घाओं को परास्त कर रहा था। अन्य किसी को मैने नहीं देखा।
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बर्बरीक की बात सुनकर अर्जुन लजा गए और श्रीकृष्ण के पैरों पर गिरकर क्षमा याचना की।
उपदेश यह कि युद्घ एक ही आदमी के बूते किया जाता है। बाक़ी सब या तो यादव सेनाएँ हैं अथवा शिखंडी या फिर अर्जुन की तरह बृहन्नला!
नोट: यहाँ यादव किसी जाति विशेष के लिए नहीं कहा गया है, यह श्रीकृष्ण की सेना का नाम था। इसलिए जातिवादी हुड़दंग न मचायें।
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