उत्कृष्ट जीवन की आवश्यकता
जीवन का कोई लक्ष्य न हो, कोई आदर्श-उद्देश्य न हो, तो मनुष्य की स्थिति ठीक उसी तरह होती है, जैसे बिना ड्राइवर के चलने वाली मोटर, जिसकी शक्तियों का दुरुपयोग होना और कहीं भी नष्ट-भ्रष्ट होकर अवनति के गर्त में पड़ जाना निश्चित है ।
उच्चादर्श, महान-लक्ष्य, उच्च-व्यक्तित्व, उज्ज्वल-कार्यक्रम, उच्च-व्यवहार को लक्ष्य बनाकर ही मनुष्य उत्कृष्ट आंतरिक स्थिति को प्राप्त करता है और यह स्थिति ही सांसारिक जीवन में विकास का मार्ग प्रशस्त करती है । जिसने अपने भीतरी स्तर का निर्माण करने में सफलता प्राप्त कर ली, उसके लिए बाह्य जीवन की सफलता भी सुनिश्चित है । आंतरिक स्थिति का निर्माण ही लक्ष्य-निर्धारण का मूल स्वरूप है । उसके लिए दृढ़ आस्था, अटल विश्वास, अनन्य निष्ठा का किला तैयार कर लेना ही बाह्य जीवन की सफलता का साधन बनता है । जीवन संग्राम में अंत तक वे ही व्यक्ति मोर्चे पर डटे रहते हैं, जिनका "उद्देश्य आदर्श," "लक्ष्य दृढ़," "पक्का", "अचल" और "एक" होता है । धूर्तता या प्रतिभा के बल पर कोई व्यक्ति थोड़े दिन छोटे से क्षेत्र में चमक सकता है, पर विश्व इतिहास के अनंत आकाश में चंद्र-सूर्य की तरह केवल वे ही महापुरुष चमकते रह सकते हैं, जिन्होने अपना अंतःकरण ऊँचा बनाया है । जिनका लक्ष्य, जिनकी अंत:स्थिति, जितनी ऊँची है, वस्तुतः वह उतना ही ऊँचा माना जाएगा ।
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