Saturday, June 27, 2020

NUTRILITE® Cal Mag D Plus






Calcium plays an important role in our bodies and is necessary for life. In addition to building bones and keeping them healthy (along with magnesium, and vitamins D and K), this mineral enables our muscles to contract, our blood to clot, and our heart to beat; together with magnesium, calcium causes the heart muscle to contract properly. Calcium also plays an important role in the transmission of nerve impulses and is involved in cell growth and hormone metabolism. In addition, calcium transports sodium, potassium and magnesium through our bodies. The correct ratio of calcium (and also of magnesium) in the blood depends on parathormone. This hormone can only work properly if there is enough magnesium in the blood. So calcium and magnesium are interdependent. That is why it is important to eat a varied diet in order to get all the nutrients that work together in the body. Moreover, calcium maintains the acid-base balance by making the body less acidic and more alkaline. Its action in the digestive system is very important. In this way, calcium protects our bodies against colon cancer. 

The maximum intake for calcium is about 2.5 g per day. An excess of calcium can lead to constipation, kidney stones, reduced absorption of other minerals and even cardiovascular disease. You can only get an excess of calcium through supplements, because through nutrition it is almost impossible; it is therefore better to get calcium from food than from supplements.

Another problem may be a vitamin D deficiency. If your body does not produce enough vitamin D, not all calcium that is ingested can be absorbed in the intestines. But we do not call this a surplus of calcium, but an impeded absorption of calcium. The calcium that has not been absorbed must be excreted, which is harmful to the kidneys. People who already have malfunctioning kidneys and are on medication should be careful with calcium and ask their doctor for advice. 

As I just mentioned, sufficient vitamin D is required to absorb calcium in the bones. Most of vitamin D is produced in our bodies under the influence of the sun. We should get about a third through food. About 25% of the calcium we take in through nutrition is actually absorbed by the body. However, on average 50% calcium is taken from green leafy vegetables. An exception is spinach, where about 5% of the calcium present is absorbed. This is due to the oxalic acid in spinach; in the digestive system, calcium binds to the acid to neutralize and excrete it. But apart from that, spinach is healthy because of many other bioactive substances. Exercise is also very important for the proper absorption of calcium; if your muscles move little, the absorption of calcium is negatively affected.

A high intake of sodium (table salt) can interfere with the absorption of calcium and increase the excretion of calcium from the body. A negative link has also been found between obesity, caffeine, soft drinks, smoking and (excessive) alcohol consumption and the absorption of calcium.

We lose calcium every day. If we eat a lot of unhealthy products, we lose more calcium than normal. Our bodies cannot produce their own calcium. So it is very important to get enough calcium through our diets. When we lose too much calcium and don’t get enough from the foods we eat, it is taken from our bones and teeth where about 99% of the calcium in our bodies is stored. If it happens too often, bones and teeth get weak and can more easily break. For this reason, our diets should contain a variety of different calcium-rich foods. So put more of calcium-rich foods (which are also rich in magnesium) on your menu, and enjoy! 

To find out which foods are high in calcium,

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कैल्शियम हमारे शरीर में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और जीवन के लिए आवश्यक है। हड्डियों के निर्माण और उन्हें स्वस्थ रखने (मैग्नीशियम, और विटामिन डी और के के साथ) के अलावा, यह खनिज हमारी मांसपेशियों को अनुबंधित करने, हमारे रक्त को थक्का बनाने और हमारे दिल को हरा करने में सक्षम बनाता है; मैग्नीशियम के साथ मिलकर कैल्शियम हृदय की मांसपेशियों को ठीक से सिकोड़ने का कारण बनता है। कैल्शियम तंत्रिका आवेगों के संचरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और कोशिका वृद्धि और हार्मोन चयापचय में शामिल होता है। इसके अलावा, कैल्शियम हमारे शरीर के माध्यम से सोडियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम का परिवहन करता है। रक्त में कैल्शियम (और मैग्नीशियम का भी) का सही अनुपात पैराथर्मोन पर निर्भर करता है। यह हार्मोन ठीक से काम कर सकता है अगर रक्त में पर्याप्त मैग्नीशियम हो। तो कैल्शियम और मैग्नीशियम अन्योन्याश्रित हैं। यही कारण है कि शरीर में एक साथ काम करने वाले सभी पोषक तत्वों को प्राप्त करने के लिए एक विविध आहार खाने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, कैल्शियम शरीर को कम अम्लीय और अधिक क्षारीय बनाकर एसिड-बेस बैलेंस को बनाए रखता है। पाचन तंत्र में इसकी क्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। इस तरह, कैल्शियम हमारे शरीर को कोलोन कैंसर से बचाता है।

कैल्शियम के लिए अधिकतम सेवन प्रति दिन लगभग 2.5 ग्राम है। कैल्शियम की अधिकता से कब्ज, गुर्दे की पथरी, अन्य खनिजों का अवशोषण और यहां तक ​​कि हृदय रोग हो सकता है। आप केवल पूरक आहार के माध्यम से कैल्शियम की अधिकता प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि पोषण के माध्यम से यह लगभग असंभव है; इसलिए बेहतर है कि पूरक आहार की तुलना में भोजन से कैल्शियम प्राप्त किया जाए।

एक और समस्या विटामिन डी की कमी हो सकती है। यदि आपका शरीर पर्याप्त विटामिन डी का उत्पादन नहीं करता है, तो सभी कैल्शियम जो अंतर्ग्रहण नहीं करते हैं, उन्हें आंतों में अवशोषित किया जा सकता है। लेकिन हम इसे कैल्शियम का अधिशेष नहीं कहते हैं, बल्कि कैल्शियम के प्रतिबाधित अवशोषण को कहते हैं। जिस कैल्शियम को अवशोषित नहीं किया गया है, उसे बाहर निकालना चाहिए, जो किडनी के लिए हानिकारक है। जो लोग पहले से ही गुर्दे खराब कर रहे हैं और दवा पर हैं, उन्हें कैल्शियम से सावधान रहना चाहिए और अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

जैसा कि मैंने अभी बताया, हड्डियों में कैल्शियम को अवशोषित करने के लिए पर्याप्त विटामिन डी की आवश्यकता होती है। सूर्य के प्रभाव में हमारे शरीर में अधिकांश विटामिन डी का उत्पादन होता है। हमें भोजन के माध्यम से लगभग एक तिहाई प्राप्त करना चाहिए। कैल्शियम के बारे में 25% पोषण के माध्यम से हम वास्तव में शरीर द्वारा अवशोषित होते हैं। हालांकि, हरी पत्तेदार सब्जियों से औसतन 50% कैल्शियम लिया जाता है। एक अपवाद पालक है, जहां मौजूद कैल्शियम का लगभग 5% अवशोषित होता है। यह पालक में ऑक्सालिक एसिड के कारण होता है; पाचन तंत्र में, कैल्शियम एसिड को बेअसर करने और इसे उगाने के लिए बांधता है। लेकिन इसके अलावा, कई अन्य बायोएक्टिव पदार्थों के कारण पालक स्वस्थ है। कैल्शियम के उचित अवशोषण के लिए व्यायाम भी बहुत महत्वपूर्ण है; यदि आपकी मांसपेशियां छोटी हैं, तो कैल्शियम का अवशोषण नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है।

सोडियम (टेबल सॉल्ट) का अधिक सेवन कैल्शियम के अवशोषण में बाधा डाल सकता है और शरीर से कैल्शियम का उत्सर्जन बढ़ा सकता है। मोटापा, कैफीन, शीतल पेय, धूम्रपान और (अत्यधिक) शराब के सेवन और कैल्शियम के अवशोषण के बीच एक नकारात्मक संबंध पाया गया है।

हम हर दिन कैल्शियम खो देते हैं। यदि हम बहुत सारे अस्वास्थ्यकर उत्पाद खाते हैं, तो हम सामान्य से अधिक कैल्शियम खो देते हैं। हमारे शरीर अपने स्वयं के कैल्शियम का उत्पादन नहीं कर सकते। इसलिए हमारे आहार के माध्यम से पर्याप्त कैल्शियम प्राप्त करना बहुत महत्वपूर्ण है। जब हम बहुत अधिक कैल्शियम खो देते हैं और हमारे द्वारा खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों से पर्याप्त नहीं होते हैं, तो यह हमारी हड्डियों और दांतों से लिया जाता है, जहां हमारे शरीर में लगभग 99% कैल्शियम संग्रहीत होता है। यदि यह बहुत बार होता है, तो हड्डियां और दांत कमजोर हो जाते हैं और अधिक आसानी से टूट सकते हैं। इस कारण से, हमारे आहार में विभिन्न कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थों की एक किस्म शामिल होनी चाहिए। इसलिए अपने मेनू में कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ (जो मैग्नीशियम में भी समृद्ध हैं) का अधिक सेवन करें, और आनंद लें!

यह पता लगाने के लिए कि कौन से खाद्य पदार्थ कैल्शियम में उच्च हैं,

 न्यूट्रिलाइट कैल मेग डी प्लस आपकी दैनिक आवश्यकता के लिए अच्छे सप्लीमेंट्स में से एक है।

क्या आप जानते हैं कि अंधेरा क्या है???






क्या आप जानते हैं कि अंधेरा क्या है???

अंधेरा मतलब डार्कनेस या अंधकार नहीं होता है...
बल्कि,अंधेरा मतलब ये होता है कि...प्रकाश उस तक नहीं पहुँच रहा है.

ठीक यही चीज बीमारी के बारे में भी कही जा सकती है कि...दुनिया में कोई भी बीमारी ला-इलाज नहीं होती है..

बल्कि,ला-इलाज का मतलब ये हुआ कि अभी हम उस बीमारी का इलाज नहीं जानते हैं..
अर्थात,हमें उस बीमारी का इलाज नहीं ज्ञात है.

किसी समय में प्लेग,हैजा,और टीबी वगैरह भी जानलेवा और ला-इलाज बीमारियों की श्रेणी में आते थे.

हैजा का मतलब ही हुआ करता था कि....अगर "है"..तो,"जा".

उस जमाने में जब किसी को हैजा होता था तो घर और समाज के लोग उस बीमार व्यक्ति को बोरिया-बिस्तर समेत घर और समाज से दूर किस खेत वगैरह में छोड़ आते थे ताकि बाकी लोगों तक हैजा नहीं फैले..!

क्योंकि, जब हैजा जब फैलता था जो गांव के गांव साफ हो जाया करते थे.

फिर, हैजा का इलाज ज्ञात हो गया और हैजा जानलेवा बीमारी नहीं रह गई.

अब गांव या मुहल्ले तो छोड़ो...खुद बीमार व्यक्ति की जान बच जाया करती है.

असल में हमारी प्रकृति कमाल की है...!



प्रकृति में कुछ भी फालतू नहीं है और न ही कुछ अजेय है.

हाँ...ये जरूर है कि हम मनुष्यों के लिए कुछ चीजें,कुछ वनस्पति अथवा कुछ जीवाणु घातक हैं.

लेकिन.... चूंकि वे प्रकृति के ही एक भाग है,इसीलिए,प्रकृति में उसका निदान भी मौजूद है.

क्योंकि,मानव शरीर भी आखिर प्रकृति का ही एक भाग है जो पंचतत्वों से मिलकर बना बताया गया है.

इस लिहाज से... मुझे पतंजलि के "कोरोनिल दवाई" और उसके बारे में किए गए दावे पर पूरा भरोसा है कि....ये 100% इफेक्टिव है.

क्योंकि...वायरस भी प्राकृतिक और उसकी काट भी...तो,ये बिल्कुल संभव है.

लेकिन...इस पूरे घटनाक्रम में एक छोटा सा झोल है...!

झोल को समझने के लिए...एक उदाहरण से समझें...!

कोई आदमी किसी जज के सामने भी हत्या कर दे तो उसे पकड़ के तुरंत फांसी पर नहीं चढ़ाया जा सकता है.

पहले मृतक के शरीर के पोस्टमार्टम होगा...ये देखने के लिए कि वो गोली से ही मरा है या उसपर कोई ट्रक चढ़ गया है (भले ही खुद जज उसे गोली से मरते हुए क्यों न देखा रहे).

पोस्टमार्टम में सबसे बड़ी बात यह है कि...पोस्टमार्टम सरकारी डॉक्टर और सरकारी अस्पताल का ही मान्य होता है...!

कितना भी बड़ा और हाईटेक प्राइवेट हॉस्पिटल क्यों न हो...उसकी रिपोर्ट मान्य नहीं होती है..भले ही खुद जज साहब भी उसी प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज क्यों न करवाते हों.



खैर..

पोस्टमार्टम के बाद...उस हत्यारे पर पुलिस FIR करेगी...फिर,जांच होगी.

उसके बाद उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जाएगी,फॉरेंसिक रिपोर्ट बनेगी.

फिर,कोर्ट में जाकर सारे रिपोर्ट जमा होंगे,गवाही होगी.. हत्या का कारण स्पष्ट करना होगा.

तब जाकर हत्यारे को फांसी अथवा सजा होगी.

ये एक प्रक्रिया है...!

और हाँ...जबतक उस हत्यारे को गुनाहगार साबित कर सजा नहीं हो जाती.... आप उसे हत्यारा भी नहीं बोल सकते (भले ही खुद ने उसे गोली मारते क्यों न देखा हो)...क्योंकि,कानून की नजर में सजा मिलने से पहले तक वो बेगुनाह ही है.

यही झोल है पतंजलि के "कोरोनिल" में...

आपने सब बना लिया और उसका बहुत अच्छे से परीक्षण भी कर लिया..

लेकिन, आपका कोई भी परीक्षण मान्य नहीं है जब तक कि सरकारी एजेंसियाँ उसे अप्रूव ना कर दे.

अब ऐलोपैथिक दवाइयाँ...IP, BP और USP (पहला अक्षर देश और दूसरा अक्षर फार्माकोपया को इंगित करते हैं...जैसे कि Indian Pharmacopoeia) पर आधारित होती है इसीलिए उनकी अप्रूवल और रिकॉग्निशन भी आसानी से जल्दी हो जाती है.

लेकिन,आयुर्वेद या होमियोपैथ में ऐसा नहीं हो पाता क्योंकि आयुर्वेद हमारे धर्मग्रंथों से निकला हुआ चिकित्सा विज्ञान है.

यहाँ एक बात ध्यान दिला दूँ कि...आयुर्वेद की दवाई को बनाने के लिए ड्रग कंट्रोलर के किसी अप्रूवल की जरूरत नहीं होती है...

और...ना ही आयुर्वेदिक दवा को बेचने के लिए किसी ड्रग लाइसेंस की जरूरत होती है.

इसीलिए...जब आप आयुर्वेद की दवा से किसी बीमारी को ठीक करने का दावा करोगे तो सरकार उसका प्रूफ मांगेगी कि...
पहले हमको बताओ कि...दवाई में क्या-क्या मिलाया है और आप इस दवाई से फलानी बीमारी को कैसे ठीक कर दोगे???

और हाँ....जबतक आप अपना दावा सरकारी एजेंसी के सामने प्रूफ नहीं दो...तबतक आप दवाई तो बेच सकते हो नियम के तहत.

लेकिन...दवाई को इस दावे के साथ नहीं बेच सकते कि हम अपने इस दवाई से तुम्हारी फलानी बीमारी ठीक कर देंगे.

ये दावा तभी मान्य होगा जब सरकारी एजेंसियां भी आपके दिए तकनीकी रिपोर्ट और ट्रायल रिपोर्ट को मान कर उसकी पुष्टि न कर दे.


ये बहुत हद तक ऐसा ही है कि...आप कितने भी ज्ञानी और विद्वान क्यों न रहें....
आप तबतक ग्रेजुएट नहीं हो जबतक कि...आपके हाथ में किसी सरकारी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से प्राप्त "ग्रेजुएशन की डिग्री" नहीं हो.

इसीलिए...मेरे हिसाब से आयुष मंत्रालय या भारत सरकार की बात पर पॉपकॉर्न की तरह उछलते हुए ग़ालियाँ देने लगना और इसे ""इल्लुमिनाति-फिल्लुमिनाती" से जोड़ने लगना...महज अज्ञानता और शीघ्रपतन की निशानी है.

ये सब महज तकनीकी और टेम्पोररी समस्या है जिसे जल्द ही दूर कर ली जाएगी...!

इन सबके बीच हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि...जो दुनिया में कोई नहीं कर पाया उसे स्वामी रामदेव और उनकी टीम ने कर दिखाया.

जो भी भोंसडीवाले ज्ञानचंद स्वामी रामदेव के बारे में गलत सही बोल रहे हैं और उन्हें बनिया घोषित कर रहे हैं...उनके गान पर जमा के चार लात मारने की जरूरत है.

क्योंकि...."कोरोनिल" पतंजलि से ज्यादा हिंदुस्तान की उपलब्धि है.

बोफोर्स,राफेल,S400,डसॉल्ट एविएशन (राफेल वाला) आदि कंपनियों का नाम हम भले न जानें लेकिन उसका देश हम जरूर जानते हैं...क्योंकि, अच्छे और यूनिक प्रोडक्ट देश की प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं.

और...पतंजलि एवं स्वामी रामदेव का ये "कोरोनिल" भी उसी कैटेगरी की दवा है...

क्योंकि,ये सफल है तो कल को दुनिया में यही कहा जायेगा कि ... जब पूरी दुनिया कोरोना नामक महामारी से मर रही थी तो उस समय भारत और भारत के आयुर्वेद ने दुनिया की जान बचाई थी.

ये ना सिर्फ .... हमारे देश की प्रतिष्ठा बढ़ाएगा बल्कि हमारे धर्मग्रंथ और आयुर्वेद को भी पुनर्स्थापित कर हमें विश्वगुरु बनाएगा.

इसीलिए... इस उपलब्धि के लिए हमें स्वामी रामदेव, उनकी टीम और पतंजलि पर गर्व करते हुए उनका आभार व्यक्त करना चाहिए.

जय महाकाल...!!!



👉 एलोपैथिक मेडिसिन में रिपोर्ट्स आदि के आधार प्री-अप्रूवल होता है जबकि आयुर्वेद में पोस्ट-अप्रूवल होता है..इसीलिए,सरकार ने ऐसा बयान दिया है.


Friday, June 26, 2020

Yoga is a science




There is no scripture.
Yoga has no relation with Islam, Hindu, Jain or Christian.

            But no matter what Jesus, whether Mohammed, Patanjali, Buddha, Mahavira, anyone who has attained to truth, is not available without going through yoga.
            There is no way to reach the ultimate truth of life other than yoga. Those we call religion are companions of beliefs. Yoga is not about beliefs, it is a systematic system of scientific experiments done in the direction of life truth.
           So the first thing I would like to say to you is that yoga is science, not faith. No reverence is necessary for the experience of yoga. There is no need for any kind of blindness to use yoga.
            An atheist can also enter the experiment of yoga in the same way as a believer. Yoga also does not concern the atheist-believer.
Science does not depend on your assumptions; On the contrary, due to science you have to change your perceptions.
             No science expects any kind of bailiff, any kind of recognition from you. Science expects only experiment, experiment. Science says, do it, see. Since the truths of science are real truths, they do not need any reverence. Two and two are four, but are not considered. If no one else believes, then he himself will be in trouble; From him the truth of two and two four does not get in trouble.
           Science does not begin with recognition; Science begins with discovery, from exploration. In the same way, yoga also does not start with recognition; Discovery begins with curiosity, exploration. Therefore yoga requires only the power to experiment, the ability to experiment, the courage to seek; And there is no need.
            Yoga is science, when I say so, I want to talk to you about some sutras, which are the basic foundation of yoga science. These sutras have no relation with any religion, although no religion can survive without these sutras. These formulas do not need the support of any religion, but without the support of these formulas, religion cannot exist for a single moment.

First Sutra of Yoga: The first formula of yoga is that life is energy, life is energy. Is the life force.
            Science was not convinced in this regard for a long time; Now I agree. For a long time science used to think: The world is matter, matter is matter. But yoga had announced thousands of years before science discoveries that matter is untrue, a lie, an illusion, an illusion. Confusion does not mean no. Meaning of illusion: It is not as it appears and does not appear as it is. But in the last thirty years, science has got to take steps one by one.

In the eighteenth century, there was a declaration of scientists that God has died, the soul has no existence, matter is everything. But in the last thirty years the exact opposite has happened. Science had to say that there is no substance, only visible. Energy is the truth, power is the truth. But due to the rapid movement of energy, the substance is felt.

The walls are visible one, if you want to come out then your head will break. How to say that walls are illusions? They are clearly visible. Where will you stand if the ground is not under the feet?
No, science does not say that there is no substance. In this sense it says that what we can see is not the same.

             If we drive an electric fan with great speed, its three petals will stop appearing three times. Because the petals will move so fast that the empty space between them will be filled before you can see. Before the empty space gets caught in the eye, a petal will come to the empty space. If a very fast electric fan is rotated, you will see a round circle of tin rotating, the petals will not be seen. You will not be able to count how many petals there are. If you can rotate more quickly, you will not be able to throw a stone and cross it, the stone will fall across it. If you can rotate faster, as fast as the atoms are moving, if the electric fan can be rotated as fast, you can sit on it with fun, you will not fall. And you won't even know that the petals are rolling down. * Because the new petal will come down before the time it takes to find out. Let your feet report that the petal has changed to your head, before it the second petal will come. If you do not know the gap between the gap and the gap, then you will be able to stand happily.
This is how we stand still. The molecules are moving fast, their movement is fast, so things seem to be moving. Nothing is fixed in the world. And the things that seem to be stagnant are all going on.
Even if those things kept happening, there was no difficulty. As much as science broke down the atom, it came to know that after the atom there is no more substance, only energy particles, electrons remain, electric particles remain. It is also not right to call them particles, because particles take care of matter. So he had to create a new word in English, the name of that word is quanta. Quanta means: even particles, not even particles; Particle and wave as well, together. There can be waves of electricity, there cannot be particles. There can be waves of power, there cannot be particles. But our language is old, so we go away as particles. There is no such thing as such particles. Now in the eyes of science, this whole world is an extension of energy, the energy of electricity.
This is the first formula of yoga: Life is energy, power is power.
Second Sutra of Yoga: Shakti has two dimensions - one existence and one non-existence; Existence and Non-Existence.
Shakti can exist and exist even in infinity. When there is power in existence, the world becomes zero and when it exists, the universe expands. Whatever thing, Yoga believes, it may not be. Whatever it is, it can contain even if it is not there. Whoever is born has his death. Which is to be, is not to be. What is visible may not be visible.
Yoga believes that everything in this world is of double dimensions, double dimensions. Nothing in this world is one-dimensional.

We cannot say that a man was born and did not die again. No matter how long we spend his life, again and again we will have to ask whether he will die, sometimes he will die. It is impossible to conceive like this, even to make the impression that one end is of birth and the other end is not of death. Far, no matter how far, the distance seems endless, but the other end is inevitable. One end is compulsory along the other end, just as two sides of a coin are mandatory. If a coin of the same aspect is possible… then it seems impossible, it cannot be. There will be another aspect! Because only one aspect has to be the other.
Of science, the second formula of yoga science is: Everything is of double dimensions. There is a dimension of being, of existence; The second dimension of non-existence is non-existence.
The world is there, it may not be the world. We are, we may not be. Whatever it is, it cannot be. By not being you do not mean that someone will be in another form. Not at all possible. Existence is one aspect, existence is another aspect.
It seems difficult to think, how will it not happen? How will it enter into not being? But if we look around life, we will know that Pratipal, which is not, is happening; What is there is lost in not being.
This sun is ours. It is getting cold everyday. Its rays are being lost in the void. Scientists say that it will be able to remain warm for four thousand years. In four thousand years all its rays will be lost to zero, then it will also become zero.
If rays can be lost in the void, then there will be rays from the zero, otherwise how will the sun be born? Science says that our sun is dying, but other suns are being born at other ends. Where are they born from? They are born from zero.
The Vedas say that when there was nothing. The Upanishads also speak of the moment when there was nothing. The Bible also talks about the moment when there was nothing, there was nothing, nothing was nothing. Being born from that something is happening and the opposite happens to be absorbed in something. If we consider the entire existence as one, then near this existence we will have to accept the existence.

The second sutra of yoga is: there is infinity behind every existence.
So power has two dimensions: existence and non-existence. Power may or may not be there, nor can it be lost. Therefore, Yoga believes that creation is only one aspect, holocaust is another aspect. It is not that everything will last forever; Will lose, will also become zero. It will happen again and again and again and again. For example, if a seed is broken, there is no trace of any tree. No matter how much search, there is no news of the tree anywhere. But then the tree definitely comes from this small seed. We never thought that what is not found in the seed, where does it come from? And hiding such a big tree in such a small seed?
The tree is then lost by giving birth to seeds. This is how the whole existence is formed, loses. Shakti comes into existence and goes into existence.
It is very difficult to catch the existence. We can see existence. So from the point of view of yoga, one who believes only existence, who understands that existence is everything, he is looking at the incomplete. And to know the incomplete is ignorance. Do not know the meaning of ignorance, ignorance means to know the incomplete. We know that we are, even if we know enough that I do not know, I still do. It is in us to know. Therefore, do not know the meaning of ignorance. Even the ignorant knows something. The meaning of ignorance - in terms of yoga - is to know half.
And remember, half truth is worse than false. Because it is possible to get rid of untruth, getting rid of half truth is very difficult. Because it seems to be true and it is not true. It also seems to be true and not true. If the whole is untrue, the Nikhalis are untrue, then it will not take long to get rid of it. But if incomplete, half truth, it will be very difficult to get rid of it.

There is another reason why such a thing as truth cannot be halved, one dies by doing half. Can you cut your love in half? Can you say that I love you halfway?
Will either love or not. Half love is not possible.
Can you say that I steal half? May be stealing half rupees. But theft of half rupees is complete theft. Theft of lakhs of rupees is also a complete theft. Theft of half the money is also a complete theft. Theft cannot be halved. Half the things can be done. But the theft cannot be halved.
Half! Half means that you are in some illusion.

So Yoga says, those who only see existence, they have caught half. And the one who catches half, he lives in confusion, he lives in ignorance. There is another aspect to it. The man who says that I am born but does not want to die. The man is holding half. Will be sad, will live in ignorance. Anything else, death will come, because half cannot be cut. If you accept birth, death is half of it, it is also connected. The man who says, I will choose only happiness, not sorrow. He is again in error. Yoga says, you fall into error only by choosing half. Grief is another part of happiness. He is half. Therefore, the man who wants to be happy will have to be sad. A man who wants to calm down will have to become restless. there is no way.

Yoga says ignorance is to leave half. He is a part of it.
But we do not see the whole! We catch the aspect we see and the other aspect is denied. Without realizing that when we have caught half, half is waiting behind, present, searching for opportunity, will soon appear.

Yoga states that there are two forms of energy. And one who understands both forms is able to move in yoga. One who catches one form, half, becomes inept. The one we call bhogi is the name of the man holding the half. What we call a yogi is the name of holding the whole.
Yoga only means - the total. Yoga means - joint. Yoga also means addition in the language of mathematics. Yoga also means in the language of spirituality - integrated, the total, complete, whole.
We do not call anyone who is an enemy of yoga; The bhogi we call the one who catches half and lives half as full. The yogi knows the whole, so does not hold again.

This is also very interesting! The catchers are always going to catch half, the one who catches the whole person does not get caught. Whoever saw that with birth is death, now why should he hold the birth? And why should he also catch death? Because he knows birth is with death. He who knows that there is sorrow with happiness, why should he hold on to happiness? And why should he hold sorrow also, because he knows there is happiness with sorrow. Actually, he knows, happiness and sorrow are two sides of the same coin. Not two things, the same thing has two dimensions, two dimensions. Therefore the yogi gets outside the hold, gets out of the clinging.

The second sutra is necessary to understand properly that there are two forms of energy, power. And we are all trying to catch a form. If someone catches youth, then one gets the grief of old age. He does not know that the second part of youth is old age. Actually, youth means the condition that is getting old. Youth means the journey of old age. The old man is not as old as the old man, take care, the louder the old man is. The old man begins to grow old slowly, the young man grows rapidly. Youth means the energy to grow old. Old means the energy of old youth, the energy of lost youth. There are two sides to the same coin. One is the door outside the house, one is the back door of the house.

Birth and death, happiness and sorrow; All the duality of life - existence-non-existence, believer-atheist. They also catch half-and-half. Therefore, both are ignorant in terms of yoga. The believer says that God is just. The believer cannot even think that there can be no God. But it is a very weak believer, because it is doing God out of the law. The rule is equally applicable to all things. If God is there then it will also have to be there.
The atheist is holding his other part. He says, God is not there.
But the thing that is not, can be. And to say so loudly that it is not, informs the fear that it is a fear of being. Otherwise, there is no need to say no. When a believer says that no, God exists, and is ready to fight, then he is also reporting that he is afraid of not even being God. Otherwise what worsens! If someone says no, then say it.
The believer is willing to fight, because he is holding a part of God. It is the same thing, whether you hold your birth and whether you hold on to God, but the other part is being denied.
Yoga says: Both are, are and are not together.
That's why the yogi also tells the atheist that you too come, because half the truth is with you; He also tells the believer, you too come because half the truth is near you and half the truth is dangerous than untrue.
The second sutra is: between duality is the expansion of power.
There is an extension of the same thing between darkness and light, two things are not. But we think there are two things. Ask the scientist! He will say, there are not two. He will say, what we call darkness is just the name of low light. And what we call light is the name of lesser darkness. There is a difference of degrees.
So at night, there are birds that can be seen. Darkness is yours, it is not dark for them. Why? Their eyes are also able to catch that slow light.
It is not that slow light does not catch itself, very bright light also does not catch the eye. If too much light is put on your eye, the eye will become blind immediately, will not be able to see. There is a viewing limit. There is darkness under him, darkness is also above him. There is only a small border, where we see light. But what we call darkness are also the characteristics of light, they are also degrees. The difference between them is not qualitative, it is quantitative. There is no difference of quality, only difference of magnitude.
Ever considered summer and winter? We understand, there are two things. No, there are not two things. It is very easy to understand from summer and winter. But we will say, there are not two things! When the summer rains the sun, how can we believe it is the same? When we sit in a cold shade, how should we consider a cold shade as the heat of the sun?
No, I am not saying that you agree to quit sitting in a cool shade. All I am saying is that what you are calling a cold shadow is a small amount of heat. And what you are calling hard sunlight is a reduced amount of coolness.
Sometimes do this by heating one hand near the stove and keeping one on ice, cool it and then put both hands in a bucket full of water. Then you will get into a lot of trouble whether the water of the bucket is hot or cold! One hand will say, it is cold. One hand will say, it is hot.
Now the same bucket cannot have both water. And two news is coming from both of your hands! The hand that is cold will feel water hot, the hand that is hot will feel water cold. Coolness and warmth are relative, relative.
The second formula of yoga is: life and death, existence-existence, darkness-light, childhood-old age, happiness-sorrow, winter-heat, all are relative, all are relativities. These are all names of the same thing. Evil-goodness….
There may be some difficulty here. Because it is very easy to accept coolness and heat, there will be same, nothing is hurt. But Rama and Ravana can be a little disturbing. The mind will say, how can this happen? But Rama and Ravana are also compatibilities, they are also not two opposing things, the same thing has to be less and less. Ravan is less in Rama, Rama is less in Ravan, that's all. Therefore, whoever loves Ravana, may see Rama in him. And Ravana can be seen in those who host Rama. They are similarities. So Rama starts appearing in what we love, which we do not love. People who see evil in Rama will be found, there is no shortage of people who see good in Ravana. Are similarities. Will depend on your hand. If Ram and Ravana can be kept in the same bucket, then it is easy. But it is difficult to keep. Good and evil are also distinctions of the same thing in terms of yoga.
This does not mean that you become bad. This does not mean that you give up goodness. The total saying of yoga is that if goodness is caught vigorously, then keep in mind, evil will also catch on the other side. A good man cannot avoid being bad. And a bad man cannot avoid being good.
Therefore, if you see the best man in a little rage, then the bad man will be found sitting inside. And if you search for the worst man from the worst, then the good man will be found sitting inside. It is very interesting that if we investigate the dreams of good men then they will prove to be bad. All good men usually have nightmares. He who saves himself from theft during the day, steals it by night. You have to vibrate Where does that second part go? One who fasted during the day gets invited to the palace at night, takes food. Dreams of lust surround him who was virtuous all day.
So if you give alcohol to a good man, then you will know who is sitting inside! Alcohol cannot make anyone bad. Alcohol has no such qualities to make it bad. Alcohol has only one quality that expels the other aspect. So often people who drink alcohol will look good after drinking alcohol.
I have heard about a man that one day he returned to his house at dusk. His wife was very surprised. His wife said that it seems you have come today after drinking alcohol!
The man said what are you talking about! I do not drink alcohol at all
His wife said that your behavior is telling that you have come after drinking.
The man said, O God, what a strange world!
He used to drink alcohol everyday, has not come today. But he used to drink alcohol, the good man in him continued to appear. Usually, good men hide within what we call bad men. And what we call good men, bad men hide within them. However, when a bad man within a good man acts evil, he does so with the excuse of good. If the good father beats his son's neck, he does not press straight; Principle, policy, etiquette, discipline, suppresses all these with excuses. If a good teacher punishes, he gives the punishment in the interest of the person. Even if a good man does evil, then he hangs on the bad peg. And even if a bad man does good work, he naturally has only a peg of evil, he hangs on to it. But whoever catches one aspect, the other aspect will always be present within it.
Yoga says: Understand both and do not hold.
So when the news of yoga first arrived in the west, the thinkers there were very surprised. Because those thinkers said, in this sum, policy has no place for morality! There does not seem to be a place of some morality in all this yoga. Those who heard the news of yoga for the first time in the West said that there is nowhere written in it - as are the Ten Commandments of Christians - Do not do this, do this, do not do this! This is bad, this is bad, this is bad! There is no talk of knots in this. What kind of yoga is this?
But science never talks about favor. Science keeps both things open. Yoga says: It is evil, it is good. And both are aspects of the same coin. If you catch one, then the other will be hidden within you. Understand both of you and don't hold on.
Therefore yoga is the transcendence of good and evil. Both have to be crossed.
Yoga is the transcendence of happiness and sorrow.
Yoga is the transgression of birth and death.
Yoga is the transcendence of existence and existence, transcends both, is beyond.
If you understand this second sutra properly, then many things will become easier to understand.






योग एक विज्ञान है





योग एक विज्ञान है. 

कोई शास्त्र नहीं है।
योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। 

            लेकिन चाहे जीसस, चाहे मोहम्मद, चाहे पतंजलि, चाहे बुद्ध, चाहे महावीर, कोई भी व्यक्ति जो सत्य को उपलब्ध हुआ है, बिना योग से गुजरे हुए उपलब्ध नहीं होता।
            योग के अतिरिक्त जीवन के परम सत्य तक पहुंचने का कोई उपाय नहीं है।  जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है।
           इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि  योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।     
            नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक।  योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। 
विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। 
             कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है। विज्ञान कहता है, करो, देखो। विज्ञान के सत्य चूंकि वास्तविक सत्य हैं, इसलिए किन्हीं श्रद्धाओं की उन्हें कोई जरूरत नहीं होती है। दो और दो चार होते हैं, माने नहीं जाते।  और कोई न मानता हो तो खुद ही मुसीबत में पड़ेगा; उससे दो और दो चार का सत्य मुसीबत में नहीं पड़ता है।
           विज्ञान मान्यता से शुरू नहीं होता;  विज्ञान खोज से, अन्वेषण से शुरू होता है। वैसे ही योग भी मान्यता से शुरू नहीं होता; खोज, जिज्ञासा, अन्वेषण से शुरू होता है। इसलिए योग के लिए सिर्फ प्रयोग करने की शक्ति की आवश्यकता है, प्रयोग करने की सामर्थ्य की आवश्यकता है, खोज के साहस की जरूरत है; और कोई भी जरूरत नहीं है। 
            योग विज्ञान है, जब ऐसा कहता हूं, तो मैं कुछ सूत्र की आपसे बात करना चाहूं, जो योग-विज्ञान के मूल आधार हैं। इन सूत्रों का किसी धर्म से कोई संबंध नहीं है, यद्यपि इन सूत्रों के बिना कोई भी धर्म जीवित रूप से खड़ा नहीं रह सकता है। इन सूत्रों को किसी धर्म के सहारे की जरूरत नहीं है, लेकिन इन सूत्रों के सहारे के बिना धर्म एक क्षण भी अस्तित्व में नहीं रह सकता है। 

योग का पहला सूत्र: योग का पहला सूत्र है कि जीवन ऊर्जा है, लाइफ इज़ एनर्जी। जीवन शक्ति है।
            बहुत समय तक विज्ञान इस संबंध में राजी नहीं था; अब राजी है। बहुत समय तक विज्ञान सोचता था: जगत पदार्थ है, मैटर है। लेकिन योग ने विज्ञान की खोजों से हजारों वर्ष पूर्व से यह घोषणा कर रखी थी कि पदार्थ एक असत्य है, एक झूठ है, एक इल्यूजन है, एक भ्रम है। भ्रम का मतलब यह नहीं कि नहीं है। भ्रम का मतलब: जैसा दिखाई पड़ता है वैसा नहीं है और जैसा है वैसा दिखाई नहीं पड़ता है। लेकिन विगत तीस वर्षों में विज्ञान को एक-एक कदम योग के अनुरूप जुट जाना पड़ा है।



          अठारहवीं सदी में वैज्ञानिकों की घोषणा थी कि परमात्मा मर गया है, आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है, पदार्थ ही सब कुछ है। लेकिन विगत तीस वर्षों में ठीक उलटी स्थिति हो गई है। विज्ञान को कहना पड़ा कि पदार्थ है ही नहीं, सिर्फ दिखाई पड़ता है। ऊर्जा ही सत्य है, शक्ति ही सत्य है।  लेकिन शक्ति की तीव्र गति के कारण पदार्थ का भास होता है। 

दीवालें दिखाई पड़ रही हैं एक, अगर निकलना चाहेंगे तो सिर टूट जाएगा। कैसे कहें कि दीवालें भ्रम हैं? स्पष्ट दिखाई पड़ रही हैं, उनका होना है। पैरों के नीचे जमीन अगर न हो तो आप खड़े कहां रहेंगे? 
नहीं, इस अर्थों में नहीं विज्ञान कहता है कि पदार्थ नहीं है। इस अर्थों में कहता है कि जो हमें दिखाई पड़ रहा है, वैसा नहीं है।

             अगर हम एक बिजली के पंखे को बहुत तीव्र गति से चलाएं तो उसकी तीन पंखुड़ियां तीन दिखाई पड़नी बंद हो जाएंगी। क्योंकि पंखुड़ियां इतनी तेजी से घूमेंगी कि उनके बीच की खाली जगह, इसके पहले कि आप देख पाएं, भर जाएगी। इसके पहले कि खाली जगह आंख की पकड़ में आए, कोई पंखुड़ी खाली जगह पर आ जाएगी। अगर बहुत तेज बिजली के पंखे को घुमाया जाए तो आपको टीन का एक गोल वृत्त घूमता हुआ दिखाई पड़ेगा, पंखुड़ियां दिखाई नहीं पड़ेंगी। आप गिनती करके नहीं बता सकेंगे कि कितनी पंखुड़ियां हैं। अगर और तेजी से घुमाया जा सके तो आप पत्थर फेंक कर पार नहीं निकाल सकेंगे, पत्थर इसी पार गिर जाएगा। अगर और तेज घुमाया जा सके, जितनी तेजी से परमाणु घूम रहे हैं, अगर उतनी तेजी से बिजली के पंखे को घुमाया जा सके, तो आप मजे से उसके ऊपर बैठ सकते हैं, आप गिरेंगे नहीं। और आपको पता भी नहीं चलेगा कि पंखुड़ियां नीचे घूम रही हैं। *क्योंकि पता चलने में जितना वक्त लगता है, उसके पहले नई पंखुड़ी आपके नीचे आ जाएगी। आपके पैर खबर दें आपके सिर को कि पंखुड़ी बदल गई, इसके पहले दूसरे पंखुड़ी आ जाएगी। बीच के गैप, बीच के अंतराल का पता न चले तो आप मजे से खड़े रह सकेंगे।


ऐसे ही हम खड़े हैं अभी भी। अणु तीव्रता से घूम रहे हैं, उनके घूमने की गति तीव्र है इसलिए चीजें ठहरी हुई मालूम पड़ती हैं। जगत में कुछ भी ठहरा हुआ नहीं है। और जो चीजें ठहरी हुई मालूम पड़ती हैं, वे सब चल रही हैं। 
अगर वे चीजें ही होती चलती हुई तो भी कठिनाई न थी। जितना ही विज्ञान परमाणु को तोड़ कर नीचे गया तो उसे पता चला कि परमाणु के बाद तो फिर पदार्थ नहीं रह जाता, सिर्फ ऊर्जा कण, इलेक्ट्रांस रह जाते हैं, विद्युत कण रह जाते हैं। उनको कण कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि कण से पदार्थ का खयाल आता है। इसलिए अंग्रेजी में एक नया शब्द उन्हें गढ़ना पड़ा, उस शब्द का नाम क्वांटा है। क्वांटा का मतलब है: कण भी, कण नहीं भी; कण भी और लहर भी, एक साथ। विद्युत की तो लहरें हो सकती हैं, कण नहीं हो सकते। शक्ति की लहरें हो सकती हैं, कण नहीं हो सकते। लेकिन हमारी भाषा पुरानी है, इसलिए हम कण कहे चले जाते हैं। ऐसे कण जैसी कोई भी चीज नहीं है। अब विज्ञान की नजरों में यह सारा जगत ऊर्जा का, विद्युत की ऊर्जा का विस्तार है।
योग का पहला सूत्र यही है: जीवन ऊर्जा है, शक्ति है। 
दूसरा सूत्र योग का: शक्ति के दो आयाम हैं--एक अस्तित्व और एक अनस्तित्व; एक्झिस्टेंस और नॉन-एक्झिस्टेंस।
शक्ति अस्तित्व में भी हो सकती है और अनस्तित्व में भी हो सकती है। अनस्तित्व में जब शक्ति होती है तो जगत शून्य हो जाता है और जब अस्तित्व में होती है तो सृष्टि का विस्तार हो जाता है। जो भी चीज है, योग मानता है, वह नहीं है भी हो सकती है। जो भी है, वह न होने में भी समा सकती है। जिसका जन्म है, उसकी मृत्यु है। जिसका होना है, उसका न होना है। जो दिखाई पड़ती है, वह न दिखाई पड़ सकती है। 
योग का मानना है, इस जगत में प्रत्येक चीज दोहरे आयाम की है, डबल डायमेंशन की है। इस जगत में कोई भी चीज एक-आयामी नहीं है। 

हम ऐसा नहीं कह सकते कि एक आदमी पैदा हुआ और फिर नहीं मरा। हम कितना ही लंबाएं उसके जीवन को, फिर-फिर कर हमें पूछना पड़ेगा कि कभी तो मरा होगा, कभी तो मरेगा। ऐसा कंसीव करना, ऐसी धारणा भी बनानी असंभव है कि एक छोर हो जन्म का और दूसरा छोर मृत्यु का न हो। दूर हो, कितना ही दूर हो, अंतहीन मालूम पड़े दूरी, लेकिन दूसरा छोर अनिवार्य है। एक छोर के साथ दूसरा छोर वैसे ही अनिवार्य है, जैसे एक सिक्के के दो पहलू अनिवार्य हैं। अगर एक ही पहलू का कोई सिक्का हो सके...तो असंभव मालूम होता है, यह नहीं हो सकता है। दूसरा पहलू होगा ही! क्योंकि एक पहलू होने के लिए ही दूसरे पहलू को होना पड़ेगा। 
विज्ञान का, योग-विज्ञान का दूसरा सूत्र है: प्रत्येक चीज दोहरे आयाम की है। होने का एक आयाम है, एक्झिस्टेंस का; नॉन-एक्झिस्टेंस का दूसरा आयाम है, न होने का। 
जगत है, जगत नहीं भी हो सकता है। हम हैं, हम नहीं भी हो सकते हैं। जो भी है, वह नहीं हो सकता है। नहीं होने का आप यह मतलब मत लेना कि कोई दूसरे रूप में हो जाएगा। बिलकुल नहीं भी हो सकता है। अस्तित्व एक पहलू है, अनस्तित्व दूसरा पहलू है। 


सोचना कठिन मालूम पड़ता है कि नहीं होने से होना कैसे निकलेगा? होना, नहीं होने में कैसे प्रवेश कर जाएगा? लेकिन अगर हम जीवन को चारों ओर देखें तो हमें पता चलेगा कि प्रतिपल, जो नहीं है, वह हो रहा; जो है, वह नहीं होने में खो रहा है। 
यह सूर्य है हमारा। यह रोज ठंडा होता जा रहा है। इसकी किरणें शून्य में खोती जा रही हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि चार हजार वर्ष तक और गरम रह सकेगा। चार हजार वर्षों में इसकी सारी किरणें शून्य में खो जाएंगी, तब यह भी शून्य हो जाएगा। 
अगर शून्य में किरणें खो सकती हैं तो फिर शून्य से किरणें आती भी होंगी, अन्यथा सूर्यों का जन्म कैसे होगा? विज्ञान कहता है कि हमारा सूर्य मर रहा है, लेकिन दूसरे सूर्य दूसरे छोरों पर पैदा हो रहे हैं। वे कहां से पैदा हो रहे हैं? वे शून्य से पैदा हो रहे हैं।
वेद कहते हैं कि जब कुछ नहीं था। उपनिषद भी बात करते हैं उस क्षण की जब कुछ नहीं था। बाइबिल भी बात करती है उस क्षण की जब कुछ नहीं था, ना-कुछ ही था, नथिंगनेस ही थी। उस ना-कुछ से होना पैदा होता है और होना प्रतिपल ना-कुछ में लीन होता चला जाता है। अगर हम पूरे अस्तित्व को एक समझें तो इस अस्तित्व के निकट ही हमें अनस्तित्व को भी स्वीकार करना पड़ेगा। 

योग का दूसरा सूत्र है: प्रत्येक अस्तित्व के पीछे अनस्तित्व जुड़ा है। 
तो शक्ति के दो आयाम हैं: अस्तित्व और अनस्तित्व। शक्ति हो भी सकती है, नहीं भी हो सकती है, न में भी खो सकती है। इसलिए योग मानता है, सृष्टि सिर्फ एक पहलू है, प्रलय दूसरा पहलू है। ऐसा नहीं है कि सब कुछ सदा रहेगा; खोएगा, शून्य भी हो जाएगा। फिर-फिर होता रहेगा, खोता रहेगा। जैसे एक बीज को तोड़ कर देखें, तो कहीं किसी वृक्ष का कोई पता नहीं चलता। कितना ही खोजें, वृक्ष की कहीं कोई खबर नहीं मिलती। लेकिन फिर इस छोटे से बीज से वृक्ष आता जरूर है। कभी हमने नहीं सोचा कि बीज में जो कभी भी नहीं मिलता है, वह कहां से आता है? और इतने छोटे से बीज में इतने बड़े वृक्ष का छिपा होना?
फिर वह वृक्ष बीजों को जन्म देकर फिर खो जाता है। ठीक ऐसे ही पूरा अस्तित्व बनता है, खोता है। शक्ति अस्तित्व में आती है और अनस्तित्व में चली जाती है।

अनस्तित्व को पकड़ना बहुत कठिन है। अस्तित्व तो हमें दिखाई पड़ता है। इसलिए योग की दृष्टि से, जो सिर्फ अस्तित्व को मानता है, जो समझता है कि अस्तित्व ही सब कुछ है, वह अधूरे को देख रहा है। और अधूरे को जानना ही अज्ञान है। अज्ञान का अर्थ न जानना नहीं है, अज्ञान का अर्थ अधूरे को जानना है। जानते तो हम हैं ही, अगर हम इतना भी जानते हैं कि मैं नहीं जानता, तो भी मैं जानता तो हूं ही। जानना तो हममें है ही। इसलिए अज्ञान का अर्थ न जानना नहीं है। अज्ञानी से अज्ञानी भी कुछ जानता ही है। अज्ञान का अर्थ--योग की दृष्टि में--आधे को जानना है।
और ध्यान रहे, आधा सत्य असत्य से बदतर होता है। क्योंकि असत्य से छुटकारा संभव है, आधे सत्य से छुटकारा बहुत मुश्किल होता है। क्योंकि वह सत्य भी मालूम पड़ता है और सत्य होता भी नहीं। प्रतीत भी होता है कि सत्य है और सत्य होता भी नहीं। अगर असत्य हो पूरा का पूरा, निखालिस असत्य हो, तो उससे छूटने में देर नहीं लगेगी। लेकिन अधूरा, आधा सत्य हो, तो उससे छूटना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

और भी एक कारण है कि सत्य जैसी चीज आधी नहीं की जा सकती, आधी करने से मर जाती है। क्या आप अपने प्रेम को आधा कर सकते हैं? क्या आप ऐसा कह सकते हैं किसी से कि मैं तुम्हें आधा प्रेम करता हूं? 
या तो प्रेम करेंगे या नहीं करेंगे। आधा प्रेम संभव नहीं है। 
क्या आप ऐसा कह सकते हैं कि मैं आधी चोरी करता हूं? हो सकता है, आधे रुपये की चोरी करते हों। लेकिन आधे रुपये की चोरी पूरी ही चोरी है। लाख रुपये की चोरी भी पूरी चोरी है। आधे पैसे की चोरी भी पूरी चोरी है। चोरी आधी नहीं की जा सकती। आधी चीजों की की जा सकती है। लेकिन चोरी आधी नहीं हो सकती।
आधा! आधे का अर्थ ही यह है कि आप किसी भ्रम में हैं। 

तो योग कहता है, जो लोग सिर्फ अस्तित्व को देखते हैं, वे आधे को पकड़े हैं। और आधे को जो पकड़ता है, वह भ्रम में जीता है, वह अज्ञान में जीता है। उसका दूसरा पहलू भी है। जो आदमी कहता है कि मैं जन्म तो लिया हूं, लेकिन मरना नहीं चाहता। वह आदमी आधे को पकड़ रहा है। दुख पाएगा, अज्ञान में जीएगा। और कुछ भी करे, मौत आएगी ही, क्योंकि आधे को काटा नहीं जा सकता है। जन्म को स्वीकार किया है तो मौत उसका आधा हिस्सा है, वह साथ ही जुड़ा है। जो आदमी कहता है, मैं सुख को ही चुनूंगा, दुख को नहीं। वह फिर भूल में पड़ रहा है। योग कहता है, तुम आधे को चुन कर ही गलती में पड़ते हो। दुख सुख का ही दूसरा हिस्सा है। वह आधा हिस्सा है। इसलिए जो आदमी सुखी होना चाहता है, उस आदमी को दुखी होना ही पड़ेगा। जो आदमी शांत होना चाहता है, उसे अशांत होना ही पड़ेगा। कोई उपाय नहीं है।

योग कहता है, आधे को छोड़ देना ही अज्ञान है। वह उसका ही हिस्सा है। 
लेकिन हम देखते नहीं पूरे को! जो पहलू हमें दिखाई पड़ता है उसे हम पकड़ लेते हैं और दूसरे पहलू को इनकार किए चले जाते हैं। बिना यह समझे कि जब हमने आधे को पकड़ लिया है तो आधा पीछे प्रतीक्षा कर रहा है, मौजूद है, अवसर की खोज कर रहा है, जल्दी ही प्रकट हो जाएगा। 

योग कहता है कि ऊर्जा के दो रूप हैं। और जो दोनों ही रूप को समझ लेता है, वह योग में गति कर पाता है। जो एक रूप को, आधे को पकड़ लेता है, वह अयोगी हो जाता है। जिसको हम भोगी कहते हैं, वह आधे को पकड़े हुए आदमी का नाम है। जिसे हम योगी कहते हैं, वह पूरे को पकड़े हुए का नाम है।
योग का मतलब ही होता है--दि टोटल। योग का मतलब होता है--जोड़। गणित की भाषा में भी योग का मतलब जोड़ होता है। अध्यात्म की भाषा में भी योग का मतलब होता है--इंटीग्रेटेड, दि टोटल, पूरा, समग्र। 


भोगी हम उसे नहीं कहते जो योग का दुश्मन है; भोगी हम उसे कहते हैं जो आधे को पकड़ता और आधे को पूरा मान कर जीता है। योगी पूरे को जान लेता है, इसलिए फिर पकड़ता ही नहीं। 

यह भी बड़े मजे की बात है! पकड़ने वाले सदा आधे को ही पकड़ने वाले होते हैं, पूरे को जान लेने वाला पकड़ता नहीं। जिसको यह दिखाई पड़ गया कि जन्म के साथ मृत्यु है, अब वह किसलिए जन्म को पकड़े? और वह मृत्यु को भी क्यों पकड़े? क्योंकि वह जानता है मृत्यु के साथ जन्म है। जो जानता है कि सुख के साथ दुख है, वह सुख को क्यों पकड़े? और वह दुख को भी क्यों पकड़े, क्योंकि वह जानता है दुख के साथ सुख है। असल में वह जानता है, सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दो चीजें नहीं, एक ही चीज के दो आयाम हैं, दो डायमेंशन हैं। इसलिए योगी, पकड़ने के बाहर हो जाता है, क्लिंगिंग के बाहर हो जाता है। 

दूसरा सूत्र ठीक से समझ लेना जरूरी है कि ऊर्जा, शक्ति के दो रूप हैं। और हम सब एक रूप को पकड़ने की कोशिश में लगे होते हैं। कोई जवानी को पकड़ता है, तो फिर बुढ़ापे का दुख पाता है। वह जानता नहीं कि जवानी का दूसरा हिस्सा बुढ़ापा है। असल में जवानी का मतलब है, वह स्थिति जो बूढ़ी हुई जा रही है। जवानी का मतलब है, बुढ़ापे की यात्रा। बूढ़ा आदमी उतने जोर से बूढ़ा नहीं होता, ध्यान रखना, जितने जोर से जवान बूढ़ा होता है। बूढ़ा आदमी धीरे-धीरे बूढ़ा होने लगता है, जवान तेजी से बूढ़ा होता है। जवानी का मतलब ही बूढ़े होने की ऊर्जा है। बूढ़े का मतलब बीत गई जवानी की ऊर्जा है, चुक गई जवानी की ऊर्जा है। एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक घर के बाहर का दरवाजा है, एक घर के पीछे का दरवाजा है।

जन्म और मृत्यु, सुख और दुख; जीवन के सभी द्वंद्व--अस्तित्व-अनस्तित्व, आस्तिक-नास्तिक। वे भी आधे-आधे को पकड़ते हैं। इसलिए योग की दृष्टि में दोनों ही अज्ञानी हैं। आस्तिक कहता है कि भगवान बस है। आस्तिक सोच भी नहीं सकता कि भगवान का न होना भी हो सकता है। लेकिन यह बड़ा कमजोर आस्तिक है, क्योंकि यह भगवान को नियम के बाहर कर रहा है। नियम तो सभी चीजों पर एक सा लागू है। भगवान अगर है तो उसका न होना भी होगा।
नास्तिक उसके दूसरे हिस्से को पकड़े है। वह कहता है, भगवान नहीं है। 
लेकिन जो चीज नहीं है, वह हो सकती है। और इतने जोर से कहना कि नहीं है, इस डर की सूचना देता है कि उसके होने का भय है। अन्यथा, नहीं है कहने की कोई जरूरत नहीं है। जब एक आस्तिक कहता है कि नहीं, भगवान है ही, और लड़ने को तैयार हो जाता है, तब वह भी खबर दे रहा है कि भगवान के भी न हो जाने का डर उसे है। अन्यथा क्या बिगड़ता है! कोई कहता है नहीं है तो कहे। 
आस्तिक लड़ने को तैयार है, क्योंकि वह भगवान का एक हिस्सा पकड़ रहा है। वह वही की वही बात है, चाहे अपना जन्म पकड़ो और चाहे भगवान का होना पकड़ो, लेकिन दूसरे हिस्से को इनकार किया जा रहा है। 
योग कहता है: दोनों हैं, होना और न होना साथ ही साथ हैं।

इसलिए योगी नास्तिक को भी कहता है कि तुम भी आ जाओ, क्योंकि आधा सत्य है तुम्हारे पास; आस्तिक को भी कहता है, तुम भी आ जाओ, क्योंकि आधा सत्य ही है तुम्हारे पास और आधे सत्य असत्य से भी खतरनाक हैं।
दूसरा सूत्र है: द्वंद्व के बीच शक्ति का विस्तार है। 
अंधेरे और प्रकाश के बीच एक ही चीज का विस्तार है, दो चीजें नहीं हैं। लेकिन हमें लगता है दो चीजें हैं। वैज्ञानिक से पूछें! वह कहेगा, दो नहीं हैं। वह कहेगा, जिसे हम अंधेरा कहते हैं, वह सिर्फ कम प्रकाश का नाम है। और जिसे हम प्रकाश कहते हैं, वह कम अंधेरे का नाम है। डिग्रीज का फर्क है। 
इसलिए रात में, पक्षी हैं जिनको दिखाई पड़ता है। अंधेरा है आपका, उनके लिए अंधेरा नहीं है। क्यों? उनकी आंखें उतने धीमे प्रकाश को भी पकड़ने में समर्थ हैं। 
ऐसा नहीं है कि धीमा प्रकाश ही पकड़ में नहीं आता, बहुत तेज प्रकाश भी आंख की पकड़ में नहीं आता। अगर बहुत तेज प्रकाश आपकी आंख पर डाला जाए, आंख तत्काल अंधी हो जाएगी, देख नहीं पाएगी। देखने की एक सीमा है। उसके नीचे भी अंधकार है, उसके ऊपर भी अंधकार है। बस एक छोटी सी सीमा है, जहां हमें प्रकाश दिखाई पड़ता है। लेकिन जिसे हम अंधकार कहते हैं, वह भी प्रकाश की तारतम्यताएं हैं, वे भी डिग्रीज हैं। उनमें जो अंतर है, क्वालिटेटिव नहीं है, क्वांटिटेटिव है। गुण का कोई अंतर नहीं है, सिर्फ परिमाण का अंतर है।
गर्मी और सर्दी पर कभी खयाल किया है? हम समझते हैं, दो चीजें हैं। नहीं, दो चीजें नहीं हैं। गर्मी-सर्दी से समझना बहुत आसान पड़े। लेकिन हम कहेंगे, दो चीजें नहीं हैं! जब गर्मी बरसती है सूरज की तब हम कैसे मान लें कि यह वही है? जब शीतल छाया में बैठते हैं, तो शीतल छाया को हम कैसे सूरज की गरमी मान लें? 
नहीं, मैं नहीं कह रहा हूं कि आप एक मान कर शीतल छाया में बैठना छोड़ दें। मैं इतना ही कह रहा हूं कि जिसे आप शीतल छाया कह रहे हैं, वह गरमी की ही कम मात्रा है। और जिसे आप सख्त धूप कह रहे हैं, वह शीतलता की ही कम हो गई मात्रा है। 
कभी ऐसा करें कि एक हाथ को स्टोव के पास रख कर गरम कर लें और एक को बर्फ पर रख कर ठंडा कर लें और फिर दोनों हाथों को एक बाल्टी भरे पानी में डाल दें। तब आप बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे कि बाल्टी का पानी गरम है या ठंडा! एक हाथ कहेगा, ठंडा है। एक हाथ कहेगा, गरम है। 
अब एक ही बाल्टी का पानी दोनों नहीं हो सकता। और आपके दोनों हाथों में से दो खबरें आ रही हैं! जो हाथ ठंडा है उसे पानी गरम मालूम होगा, जो हाथ गरम है उसे पानी ठंडा मालूम होगा। ठंडक और गरमी रिलेटिव हैं, सापेक्ष हैं।
योग का दूसरा सूत्र है: जीवन और मृत्यु, अस्तित्व-अनस्तित्व, अंधकार-प्रकाश, बचपन-बुढ़ापा, सुख-दुख, सर्दी-गर्मी, सब रिलेटिव हैं, सब सापेक्षताएं हैं। ये सब एक ही चीज के नाम हैं। बुराई-भलाई...। 
यहां जरा कठिनाई हो सकती है। क्योंकि ठंडक और गर्मी को मान लेना बहुत आसान है, एक सी होंगी, कुछ हर्ज भी नहीं होता। लेकिन राम और रावण, तो जरा अड़चन हो सकती है। मन कहेगा, ऐसा कैसा हो सकता है? लेकिन राम और रावण भी तारतम्यताएं हैं, वे भी दो विरोधी चीजें नहीं हैं, एक ही चीज का कम-ज्यादा होना है। राम में रावण जरा कम है, रावण में राम जरा कम है, बस इतना ही। इसलिए जो रावण को प्रेम करे, उसमें उसे राम दिखाई पड़ सकता है। और जो राम की दुश्मनी करे, उनमें भी रावण दिखाई पड़ सकता है। वे तारतम्यताएं हैं। तो जिसे हम प्रेम करते हैं उसमें राम दिखाई पड़ने लगता है, जिसे हम नहीं प्रेम करते उसमें रावण दिखाई पड़ने लगता है। राम में भी बुरा देखने वाले लोग मिल जाएंगे, रावण में भी भला देखने वालों की कोई कमी नहीं है। तारतम्यताएं हैं। आपके हाथ पर निर्भर करेगा। राम और रावण को अगर एक ही बाल्टी में रखा जा सके तो आसानी हो। लेकिन रखना मुश्किल है। अच्छाई और बुराई भी योग की दृष्टि में एक ही चीज के भेद हैं। 

इसका यह मतलब नहीं कि आप बुरे हो जाएं। इसका यह मतलब नहीं है कि आप अच्छाई छोड़ दें। योग का कुल कहना इतना है कि अगर अच्छाई को जोर से पकड़ा, तो ध्यान रखना, दूसरे पहलू पर बुराई भी पकड़ में आ जाएगी। अच्छा आदमी बुरा होने से नहीं बच सकता। और बुरा आदमी अच्छे होने से नहीं बच सकता। 
इसलिए अच्छे से अच्छे आदमी को अगर थोड़ा उधाड़ कर देखेंगे तो बुरा आदमी भीतर बैठा मिल जाएगा। और बुरे से बुरे आदमी को जरा तलाश करेंगे तो अच्छा आदमी भीतर बैठा मिल जाएगा। यह बड़े मजे की बात है कि अगर हम अच्छे आदमियों के सपनों की जांच-पड़ताल करें तो वे बुरे सिद्ध होंगे। सब अच्छे आदमी आमतौर से बुरे सपने देखते हैं। जिसने दिन में चोरी से अपने को बचाया, वह रात में चोरी कर लेता है। कंपनशेसन करना पड़ता है न! वह जो दूसरा हिस्सा है वह कहां जाएगा? जिसने दिन में उपवास किया, वह रात राजमहल में निमंत्रित हो जाता है, भोजन कर लेता है। जो दिन भर सदाचारी था, रात में वासना के स्वप्न उसे घेर लेते हैं। 
इसलिए अगर भले आदमी को शराब पिला दें, तब आपको पता चलेगा कि भीतर कौन बैठा है! शराब किसी को बुरा नहीं बना सकती है। शराब में वैसा कोई गुण नहीं है बुरा बनाने का। शराब में सिर्फ एक गुण है कि वह जो दूसरा पहलू है उसे उघाड़ देती है। इसलिए अक्सर शराब पीने वाले लोग शराब पीने के बाद अच्छे मालूम पड़ेंगे। 
मैंने सुना है एक आदमी के बाबत कि एक दिन वह सांझ अपने घर लौटा। उसकी पत्नी बहुत हैरान हुई। उसकी पत्नी ने कहा कि मालूम होता है तुम आज शराब पीकर आ गए हो! 
उस आदमी ने कहा कि कैसी बातें कर रही हो! मैंने शराब बिलकुल नहीं पी है। 
उसकी पत्नी ने कहा कि तुम्हारा व्यवहार बता रहा है कि तुम पीकर आ गए हो। 
उस आदमी ने कहा, हे परमात्मा, कैसी अजीब दुनिया है! 
वह रोज शराब पीकर आता था, आज पीकर नहीं आया है। लेकिन शराब पीकर आता था, उसके भीतर का अच्छा आदमी प्रकट होता रहा। आमतौर से जिन्हें हम बुरे आदमी कहते हैं, उनके भीतर अच्छे आदमी छिपे रहते हैं। और जिनको हम अच्छे आदमी कहते हैं, उनके भीतर बुरे आदमी छिपे रहते हैं। हालांकि जब अच्छे आदमी के भीतर का बुरा आदमी काम करता है बुरा, तो भी अच्छे का बहाना लेकर करता है। अगर अच्छा बाप अपने बेटे की गर्दन दबाता है, तो सीधी नहीं दबा देता; सिद्धांत, नीति, शिष्टाचार, अनुशासन, इन सबका बहाना लेकर दबाता है। अगर अच्छा शिक्षक दंड देता है, तो जिसको दंड देता है उसी के हित में देता है। अच्छा आदमी अगर बुरा भी करता है, तो अच्छी खूंटी पर ही टांगता है बुराई को। और बुरा आदमी अगर अच्छे काम भी करता है, तो स्वभावतः उसके पास बुराई की खूंटी ही होती है, वह उसी पर टांगता है। लेकिन जो भी एक पहलू को पकड़ेगा, उसके भीतर दूसरा पहलू सदा मौजूद रहेगा। 
योग कहता है: दोनों को समझ लो और पकड़ो मत। 
इसलिए जब पहली बार योग की खबर पश्चिम में पहुंची तो वहां के विचारक बहुत हैरान हुए। क्योंकि उन विचारकों ने कहा, इस योग में नीति की, मॉरेलिटी की तो कोई जगह ही नहीं है! ये सारे योग में कुछ नैतिकता का स्थान नहीं मालूम पड़ता! जिन लोगों ने पश्चिम में पहली बार योग की खबरें सुनीं, उन्होंने कहा कि इसमें कहीं भी नहीं लिखा हुआ है--जैसा कि टेन कमांडमेंट्स हैं ईसाइयों के--यह मत करो, यह मत करो, यह मत करो! यह बुरा है, यह बुरा है, यह बुरा है! डोंट्स की कोई बात ही नहीं है इसमें। यह कैसा योग! 
लेकिन विज्ञान कभी भी पक्ष की बात नहीं करता। विज्ञान तो निष्पक्ष दोनों बातों को खोल कर रख देता है। योग कहता है: यह बुराई है, यह अच्छाई है। और दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं। अगर तुम एक को भी पकड़ोगे तो दूसरा तुम्हारे भीतर छिपा हुआ मौजूद रहेगा। तुम दोनों को समझ लो और पकड़ो मत। 
इसलिए योग अच्छे और बुरे का ट्रांसेनडेंस है। दोनों के पार हो जाना है।
योग सुख और दुख का अतिक्रमण है।
योग जन्म और मृत्यु का अतिक्रमण है।
योग अस्तित्व-अनस्तित्व का अतिक्रमण है, दोनों के पार है, बियांड है।
यह दूसरा सूत्र ठीक से समझ लें तो आगे बहुत सी बातें समझनी आसान हो जाएंगी।

Monday, June 22, 2020

Tax Deductions : At a glance




Various sub-sections of section 80 under Chapter VI A of Income Tax Act that allows an assessee to claim deductions from the gross total income on account of various tax saving investments, permitted expenditures, donations etc. Such deductions allow an assessee to considerably reduce the tax payable.

80C: Deduction in respect of life insurance premium, deferred annuity, contributions to provident fund (PF), subscription to certain equity shares or debentures, etc. The deduction limit is Rs 1.5 lakh together with section 80CCC and section 80CCD(1). 



80CCC: Deduction in respect of contribution to certain pension funds. The deduction limit is Rs 1.5 lakh together with section 80C and section 80CCD(1). 



80CCD(1): Deduction in respect of contribution to pension scheme of Central Government – in the case of an employee, 10 per cent of salary (Basic+DA) and in any other case, 20 per cent of his/her gross total income in a FY will be tax free. Overall limit is Rs 1.5 lakh together with 80C and 80CCC.



80CCD(1B): Deduction up to Rs 50,000 in respect of contribution to pension scheme of Central Government (NPS). 



80CCD(2): Deduction in respect of contribution to pension scheme of Central Government by employer. Tax benefit is given on 14 per cent contribution by the employer, where such contribution is made by the Central Government and where contribution is made by any other employer, tax benefit is given on 10 per cent. Deductions under Chapter VI A of Income Tax Act: Know how much tax ?may be saved 



80D: Deduction in respect of Health Insurance premium. Premium paid up to Rs 25,000 is eligible for deduction for individuals, other than senior citizens. For senior citizens, the limit is Rs 50,000 and overall limit u/s 80D is Rs 1 lakh. 



80DD: Deduction in respect of maintenance including medical treatment of a dependent who is a person with disability. The maximum deduction limit under this section is Rs 75,000. 



80DDB: Deduction in respect of expenditure up to Rs 40,000 on medical treatment of specified disease from a neurologist, an oncologist, a urologist, a haematologist, an immunologist or such other specialist, as may be prescribed. 



80E: Deduction in respect of interest on loan taken for higher education without any upper limit. 



80EE: Deduction in respect of interest up to Rs 50,000 on loan taken for residential house property. 



80EEA: Deduction in respect of interest up to Rs 1.5 lakh on loan taken for certain house property (on affordable housing). 



80EEB: Deduction in respect of interest up to Rs 1.5 lakh on loan taken for purchase of electric vehicle. 



80G: Donations to certain funds, charitable institutions, etc. Depending on the nature of the donee, the limit varies from 100 per cent of total donation, 50 per cent of total donation or 50 per cent of donation with a cap of 10 per cent of gross income. 



80GG: Deductions in respect of rent paid by non-salaried individuals who don’t get HRA benefits. Deduction limit is Rs 5,000 per month or 25 per cent of total income in a year, whichever is less. 



80GGA: Full deductions in respect of certain donations for scientific research or rural development. 



80GGC: Full deductions in respect of donations to Political Party, provided such donations are non-cash donations. 



80TTA: Deductions in respect of interest on savings bank accounts up to Rs 10,000 in case of assessees other than Resident senior citizens. 



80TTB: Deductions in respect of interest on deposits up to Rs 50,000 in case of Resident senior citizens. 



80U: Deduction in case of a person with disability. Depending on type and extent of disability maximum deduction allowed under this section is Rs 1.25 lakh. 





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प्रधानमंत्री मोदी का मौन व्रत रोकवाने अभिषेक मनु सिंहवी पहुंचे चुनाव आयोग के द्वार!

प्रधानमंत्री मोदी का मौन व्रत रोकवाने अभिषेक मनु सिंहवी पहुंचे चुनाव आयोग के द्वार! अभी कितना और करेंगे पापाचार? राम मंदिर निर्माण में जितना...