जन्म के पश्चात् हम अपने अभिभावकों से, घर के बड़े बुजुर्गाें से, बाल्यकाल के मित्रों से, अड़ोस पड़ोस के लोगों से उनके अनुसरण में गुण व अवगुण ग्रहण करते हुए बड़े होते हैं । माता पिता व बड़े बुजुर्गों द्वारा हमें अच्छी और आदरपूर्ण व्यावहारिकता सिखाने का प्रयास भी किया जाता है । साथ ही साथ हर बच्चा अपने विवेक से भी कुछ अच्छे संस्कारों की पूंजी जमा करता है ।
समझ पकड़ने के बाद हमें सभी अच्छाईयों का ज्ञान होने के बावजूद अक्सर हम अपने व्यवहार को उस अनुरूप कायम नहीं रख पाते हैं । किसी व्यक्ति का अच्छा होना तभी चरितार्थ होता है, जब वह सदा के लिए और सभी के लिए अच्छा व्यवहार करता है । लेकिन कभी कभी हम औरों की व्यवहारिक तुच्छता से प्रभावित होकर अपनी व्यवहारिक गुणवक्ता को गिरा देते हैं । फलस्वरूप हम लोगों के लिए तभी अच्छे होते हैं जब तक वे हमारे लिए अच्छे होते हैं।
यदि हम अच्छे व्यवहार वाले व्यक्ति के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं और बुरे व्यवहार वाले व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार करते हैं तो निश्चित रूप से हमारा व्यवहार उन लोगों के नियन्त्रण में है । इसलिए स्वयं से यह प्रश्न अवश्य पूछें कि क्या मैंरे आचरण में उन लोगों की चाल चलन या व्यक्तित्व झलकता है जिनके सम्पर्क में अक्सर मैं आता हूं।
सामने वाले का व्यवहार अप्रिय लगते ही हमारे अन्तर्मन में जैसे को तैसा का भाव प्रबल आवेग के रूप में सक्रिय होकर हमारी अन्तर्निहित अच्छाईयों का परित्याग करने के लिए हमें विवश कर देता है । इस आदत के दीर्धकालिक परिणााम स्वरूप हमारे ही चरित्र, संस्कारों और अच्छाईयों पर व्यक्तित्व को कुरूप बनाने वाले अवगुणों रूपी कलंकित धब्बे पड़ जाते हैं।
इसलिए आज से प्रतिदिन निर्धारित समय के लिए शुद्ध, श्रेष्ठ, नैतिक व आत्मिक गुणों की परिधि में बैठना प्रारम्भ करें ताकि हमारा चरित्र, हमारे संस्कार और हमारा व्यक्तित्व आसपास के वातावरण में मौजूद अवगुणों रूपी गन्दगी के दुष्प्रभाव से मुक्त रहे ।
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चाहे कुछ भी हो जाए, दिव्यता की चादर पूरी तरह से अपने व्यक्तित्व पर ओढ़े रखकर दूसरों के गलत व्यवहार पर त्रुटिपूर्ण प्रतिक्रिया करने की उकसाहट से स्वयं को बचाकर अपनी आन्तरिक शक्ति का संचय करें । स्वयं को यह बार बार याद दिलाते रहें कि मैं विपरीत परिवेश और विरोधी मनोवृत्ति वाले लोगों के बीच रहते हुए भी हर परिस्थिति में अपने मूल दिव्य आत्मिक गुणों का ही उपयोग करूंगा और लोगों के घृणोत्पादक व्यवहार के बावजूद सदा शुभभावना रखते हुए उनके प्रति दयाहृदयी रहुंगा ।
हर व्यक्ति का दृष्टिकोण व व्यवहार उसके जीवन में प्रतिदिन उन्पन्न होने वाली परिस्थितियों से प्रभावित होकर बदलता रहता है । इसीलिए व्यक्ति अभी अभी बड़े ही प्यार और सम्मान के साथ बात करेगा तो कुछ समय बाद उसका व्यवहार बिलकुल ही बदला हुआ नजर आएगा । कभी सामने वाले के विचारों का समर्थन करेगा तो कभी वाद विवाद करेगा, कभी सहयोग करेगा तो कभी बाधाएं उत्पन्न करेगा, कभी क्रोध करेगा तो कभी हमें देखकर भी अनदेखा कर देगा। इसलिए सामने वाले व्यक्ति का कोई आचरण अप्रिय लगने पर तत्क्षण कोई भी नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए।
यदि हम किसी के अशिष्ट व्यवहार से प्रभावित होकर स्वयं को भी अशिष्ट बना लेते हैं तो हमारी गुणवक्तायुक्त पहचान खण्डित होती है । यदि किसी का व्यवहार अप्रिय, अशिष्ट और अशोभनीय है तो यह उसका जीवन है, उसकी मनोवृत्ति है, उसके कर्म है और उसका भाग्य है । हर व्यक्ति अपना जीवन मार्ग स्वयं चुनता है । यदि किसी का गलत मार्ग है तो वह उसका अपना चुना हुआ है और हमारा सही मार्ग है तो यह हमारा अपना चुना हुआ मार्ग है । हमें किसी और को देखकर अपने चुने हुए मार्ग से भटकने की आवश्यकता नहीं।
लोगों द्वारा किए जाने वाले अप्रिय आचरण का सामना करने के लिए हमारे पास तीन विकल्प हैं । पहला कि हम अपनी शालीनता का गला घोंटकर सामने वाले के अशोभनीय व्यवहार का प्रतिबिम्ब अपने व्यवहार से दिखाकर स्वयं को उसी के समान निम्न कोटि का व्यक्ति सिद्ध करके दिखाएं । दूसरा कि सामने वाले के गलत आचरण को अपने दिल में बिठाकर उसे बार बार याद करके स्वयं को दर्दनाक अवसाद में डूबाकर बैठ जाएं । तीसरा कि हम सामने वाले के अनुचित व्यवहार से प्रभावित हुए बिना उसके भीतर काम करने वाली नकारात्मक उर्जा को अपनी अंतर्निहित गुणवक्ता से परिवर्तित करने का सफल प्रयास करें ।
किसी के दोषपूर्ण, अशुद्ध और गलत व्यवहार को धारण कर उसे अपने आचरण से ना झलकाएं बल्कि अपने श्रेष्ठ, शुद्ध और स्नेहपूर्ण व्यवहार को अपने व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब बनाएं । दैनिक कर्म व्यवहार में आत्मा के नैसर्गिक गुणों का लगातार उपयोग कर सदा प्रसन्न, सन्तुष्ट, सुखद और सफल जीवन का सबसे आशीर्वाद प्राप्त करें ।
ॐ शांति