Tuesday, August 11, 2020

तो अब सवाल है कि आज के कृष्ण सिर्फ माखन,, रास एवं कवियों के श्रृंगार रस तक ही सीमित कैसे ह़ो गए ?

 



कहते हैं कृष्ण जब धरा छोड़ कर चले गए तो कलियुग आ गया,,,,अर्जुन युद्ध हारने लगे,,, दूसरे शब्दों में कृष्ण ही वह ताकत और दिव्यता का पुंज थे ,,, जिन्होंने समाज में सात्त्विक परंपरा और संस्कृति को जिंदा रखा था,,,,,साथ ही साथ कृष्ण विजय और शौर्य के भी प्रतीक थे ,,, महाभारत साक्षात उदाहरण है,,जहां पांडवों की हैसियत ""माईनस कृष्ण"" शून्य थी। कृष्ण एक ऐसी शख्सियत हैं जो द्वापर नहीं आगे आने वालू असंख्य युगों तक समसामयिक एवं Epitome of relevance बने रहेंगे। राष्ट्रीयता की कोई भी परिभाषा,,कोई भी मापदंड कृष्ण के विचारकोष से इतर जा ही नहीं सकती।

तो अब सवाल है कि आज के कृष्ण सिर्फ माखन,, रास एवं कवियों के श्रृंगार रस तक ही सीमित कैसे ह़ो गए?????? सुदर्शन व्यक्तित्व और सुदर्शन चक्र कहां गायब हो गये????

ये कथावाचक जो अपने को हिन्दू धर्म के संरक्षक होने का दावा करते हैं,,,वो युवाओं को कृष्ण का कौन सा रुप दिखा रहे हैं,,,और वास्तविक संदेश क्या है इनका????? सवाल यह है कि कृष्ण के चरित्र को सीमित करने में राष्ट्र का कितना नुक्सान है,,यह क्या समझ पाते हैं हम!!!!! जो स्वयं के श्रीमुख से कहता है,,,


यह देख गगन मुझमें लय है,,,यह देख पवन मुझमें लय है।
मुझमें विलीन झंकार सकल,, मुझमें लय है संसार सकल
अमरत्व फूलता है मुझमें,,संहार झूलता है मुझमें।

उस ठाकुर को आज का युवा बस बंशीवट ,,, बांसुरी और रास तक ही जान पाता है। जो मानव दर्शन,, राष्ट्र दर्शन और प्रकृति दर्शन तीनों के पूर्ण प्रयाय हैं ,,,उन्हें उनकी पूर्णता से विलग कर हम अपना घोर नुकसान कर रहे हैं हजारों सालों से। मैं दावा करता हूं कि अगर पृथ्वीराज चौहान ने कृष्ण नीति को ध्यान में रखा होता तो तराइन की पहली लड़ाई से भारत का भविष्य बदल गया होता। दाहिर की गलतियों में कृष्ण को ना समझने की छाप दिखाई देती है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने जरुर कृष्ण को ध्यान में रखा,,ये मुझे लगता है। कृष्ण दया,,क्षमा ,,त्याग सबकी बात करते हैं पर राष्ट्र ,,धर्म और नारी सम्मान की कीमत पर नहीं,,,,उसपर जब बात आती है तो भले ही सहस्त्रों शीश कट जाएं पर मेरे कृष्ण को महाभारत ही चाहिए तब।

सम: शत्रौ च मिंत्रे च तथा माना पमान यो:।
शीतोष्णसुख दु:सेषु सम: संगविवॢजत: ।।

इस श्लोक के माध्यम से कृष्ण खुद कहते हैं कि मुझे निर्मोही और विरक्त भक्त चाहिएं। उन्हें वासना और विकार से रहित युवा चाहिए,,,,,टीवी सीरियल वाला आज का युवा वर्ग नहीं,,,,,, तो अब सवाल है कि जन्माष्टमी पर क्या देंगे आप और मैं कृष्ण को,,,, सबकुछ है उसके पास,,,,कुछ चाहिए उसे हमसे तो वह है बलिदान,,,त्याग अपनी विदीर्ण होती मानसिकता का,, चरित्र का,,विधर्मी आचार एवं विचार का। अन्यथा अर्जुन तब से लेकर आजतक हार ही रहा है और आगे भी हारता रहेगा।

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