Sunday, September 28, 2025

काशी में मणिकर्णिका घाट पर चिता जब शांत हो जाती है तब ………

काशी में मणिकर्णिका घाट पर चिता जब शांत हो जाती है तब  मुखाग्नि देने वाला व्यक्ति चिता भस्म पर 94 लिखता है। 


यह सभी को नहीं मालूम है। खांटी बनारसी लोग या अगल बगल के लोग ही इस परम्परा को जानते हैं। बाहर से आये शवदाहक जन इस बात को नहीं जानते।


जीवन के शतपथ होते हैं। 100 शुभ कर्मों को करने वाला व्यक्ति मरने के बाद उसी के आधार पर अगला जीवन शुभ या अशुभ प्राप्त करता है। 94 कर्म मनुष्य के अधीन हैं। वह इन्हें करने में समर्थ है पर 6 कर्म का परिणाम ब्रह्मा जी के अधीन होता है।हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश- अपयश ये 6 कर्म विधि के नियंत्रण में होते हैं। 


अतः आज चिता के साथ ही तुम्हारे 94 कर्म भस्म हो गये। आगे के 6 कर्म अब तुम्हारे लिए नया जीवन सृजित करेंगे।

अतः 100 - 6 = 94 लिखा जाता है।


गीता में भी प्रतिपादित है कि मृत्यु के बाद मन अपने साथ 5 ज्ञानेन्द्रियों को लेकर जाता है। यह संख्या 6 होती है। मन और पांच ज्ञान इन्द्रियाँ।

अगला जन्म किस देश में कहाँ और किन लोगों के बीच होगा यह प्रकृति के अतिरिक्त किसी को ज्ञात नहीं होता है। अतः 94 कर्म भस्म हुए 6 साथ जा रहे हैं।

विदा यात्री। तुम्हारे 6 कर्म तुम्हारे साथ हैं।


आपके लिए इन 100 शुभ कर्मों का विस्तृत विवरण दिया जा रहा है जो जीवन को धर्म और सत्कर्म की ओर ले जाते हैं एवं यह सूची आपके जीवन को सत्कर्म करने की प्रेरणा देगी......


  100 शुभ कर्मों की गणना धर्म और नैतिकता के कर्म-

1.सत्य बोलना

2.अहिंसा का पालन

3.चोरी न करना

4.लोभ से बचना

5.क्रोध पर नियंत्रण

6.क्षमा करना

7.दया भाव रखना

8.दूसरों की सहायता करना

9.दान देना (अन्न, वस्त्र, धन)

10.गुरु की सेवा

11.माता-पिता का सम्मान

12.अतिथि सत्कार

13.धर्मग्रंथों का अध्ययन

14.वेदों और शास्त्रों का पाठ

15.तीर्थ यात्रा करना

16.यज्ञ और हवन करना

17.मंदिर में पूजा-अर्चना

18.पवित्र नदियों में स्नान

19.संयम और ब्रह्मचर्य का पालन 

20.नियमित ध्यान और योग सामाजिक और पारिवारिक कर्म                                      

21.परिवार का पालन-पोषण

22.बच्चों को अच्छी शिक्षा देना

23.गरीबों को भोजन देना

24.रोगियों की सेवा

25.अनाथों की सहायता

26.वृद्धों का सम्मान

27.समाज में शांति स्थापना

28.झूठे वाद-विवाद से बचना

29.दूसरों की निंदा न करना

30.सत्य और न्याय का समर्थन

31.परोपकार करना

32.सामाजिक कार्यों में भाग लेना

33.पर्यावरण की रक्षा

34.वृक्षारोपण करना

35.जल संरक्षण

36.पशु-पक्षियों की रक्षा

37.सामाजिक एकता को बढ़ावा देना

38.दूसरों को प्रेरित करना

39.समाज में कमजोर वर्गों का उत्थान

40.धर्म के प्रचार में सहयोग आध्यात्मिक और व्यक्तिगत कर्म                                           

41.नियमित जप करना

42.भगवान का स्मरण

43.प्राणायाम करना

44.आत्मचिंतन

45.मन की शुद्धि

46.इंद्रियों पर नियंत्रण

47.लालच से मुक्ति

48.मोह-माया से दूरी

49.सादा जीवन जीना

50.स्वाध्याय (आत्म-अध्ययन)

51.संतों का सान्निध्य

52.सत्संग में भाग लेना

53.भक्ति में लीन होना

54.कर्मफल भगवान को समर्पित करना

55.तृष्णा का त्याग

56.ईर्ष्या से बचना

57.शांति का प्रसार

58.आत्मविश्वास बनाए रखना

59.दूसरों के प्रति उदारता

60.सकारात्मक सोच रखना सेवा और दान के कर्म

61.भूखों को भोजन देना

62.नग्न को वस्त्र देना

63.बेघर को आश्रय देना

64.शिक्षा के लिए दान

65.चिकित्सा के लिए सहायता

66.धार्मिक स्थानों का निर्माण

67.गौ सेवा

68.पशुओं को चारा देना

69.जलाशयों की सफाई

70.रास्तों का निर्माण

71.यात्री निवास बनवाना

72.स्कूलों को सहायता

73.पुस्तकालय स्थापना

74.धार्मिक उत्सवों में सहयोग

75.गरीबों के लिए निःशुल्क भोजन

76.वस्त्र दान

77.औषधि दान

78.विद्या दान

79.कन्या दान

80.भूमि दान, नैतिक और मानवीय कर्म                                          

81.विश्वासघात न करना

82.वचन का पालन

83.कर्तव्यनिष्ठा

84.समय की प्रतिबद्धता 

85.धैर्य रखना

86.दूसरों की भावनाओं का सम्मान

87.सत्य के लिए संघर्ष

88.अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना

89.दुखियों के आँसू पोंछना

90.बच्चों को नैतिक शिक्षा

91.प्रकृति के प्रति कृतज्ञता

92.दूसरों को प्रोत्साहन

93.मन, वचन, कर्म से शुद्धता

94.जीवन में संतुलन बनाए रखना


 विधि के अधीन 6 कर्म                                         

95.हानि

96.लाभ

97.जीवन

98.मरण

99.यश

100.अपयश


 

Thursday, June 5, 2025

वर्तमान कारोबारी स्थितियां और वित्तीय परिदृश्य”





वर्तमान व्यावसायिक स्थिति और वित्तीय परिदृश्य: एक व्यापक विश्लेषण


वैश्विक व्यावसायिक परिदृश्य 2025 में तेजी से बदल रहा है, जो प्रौद्योगिकी प्रगति, भू-राजनीतिक बदलावों और उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन से प्रेरित है। यह लेख वर्तमान व्यावसायिक स्थिति और वित्तीय परिदृश्य का एक संरचित विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें प्रमुख रुझान, चुनौतियाँ और अवसर शामिल हैं जो आर्थिक पर्यावरण को आकार दे रहे हैं।


 1. परिचय

व्यावसायिक स्थिति और वित्तीय बाजारों के बीच का तालमेल नीति निर्माताओं से लेकर कॉरपोरेट नेताओं तक सभी हितधारकों के लिए महत्वपूर्ण है। 2025 में, व्यवसाय एक जटिल वातावरण में कार्य कर रहे हैं, जिसमें मुद्रास्फीति दबाव, प्रौद्योगिकी व्यवधान और वैश्विक व्यापार गतिशीलता में बदलाव शामिल हैं। इन कारकों को समझना रणनीतिक निर्णय लेने और प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।


2. वर्तमान व्यावसायिक स्थिति

2.1. मैक्रोइकॉनॉमिक रुझान

- वैश्विक विकास में मंदी: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने 2025 के लिए वैश्विक जीडीपी वृद्धि को लगभग 3.2% अनुमानित किया है, जो महामारी से पहले के औसत से थोड़ा कम है। विकसित अर्थव्यवस्थाएँ उच्च ब्याज दरों के कारण धीमी वृद्धि का सामना कर रही हैं, जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाएँ लचीलापन दिखा रही हैं, लेकिन कर्ज की कमजोरियों से जूझ रही हैं।

- मुद्रास्फीति गतिशीलता: मुद्रास्फीति 2022 के उच्च स्तर से कम हुई है, लेकिन यह अभी भी चिंता का विषय है। फेडरल रिजर्व और यूरोपीय सेंट्रल बैंक जैसे केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए 4-5% की ऊंची ब्याज दरें बनाए रख रहे हैं, जो उधार लागत और निवेश को प्रभावित कर रही हैं।

- आपूर्ति श्रृंखला स्थिरीकरण: वर्षों की बाधाओं के बाद, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ स्थिर हो रही हैं, हालांकि भू-राजनीतिक तनाव और जलवायु-संबंधी व्यवधान जैसे जोखिम बने हुए हैं।


2.2. उद्योग-विशिष्ट रुझान

- प्रौद्योगिकी क्षेत्र: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और स्वचालन उत्पादकता बढ़ा रहे हैं, लेकिन नौकरी विस्थापन की चिंताएँ पैदा कर रहे हैं। तकनीकी दिग्गज जेनरेटिव AI में भारी निवेश कर रहे हैं, और वैश्विक AI खर्च 2025 में $300 बिलियन से अधिक होने का अनुमान है।

- ऊर्जा और स्थिरता: नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव तेज हो रहा है, जिसमें सौर और पवन ऊर्जा वैश्विक ऊर्जा उत्पादन का 15% हिस्सा बनाती है। हालांकि, उच्च प्रारंभिक लागत और नियामक बाधाएँ कुछ क्षेत्रों में अपनाने को धीमा कर रही हैं।

- खुदरा और उपभोक्ता सामान: ई-कॉमर्स का दबदबा बना हुआ है, जिसमें वैश्विक खुदरा बिक्री का 25% ऑनलाइन हो रहा है। उपभोक्ता स्थिरता और वैयक्तिकरण को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे ब्रांडों को नवाचार करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।


 2.3. भू-राजनीतिक और नियामक पर्यावरण

- व्यापार तनाव: अमेरिका-चीन व्यापार तनाव और क्षेत्रीय संघर्ष वैश्विक वाणिज्य को बाधित कर रहे हैं। टैरिफ और प्रतिबंध बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए अनिश्चितता पैदा कर रहे हैं।

- नियामक बदलाव: सख्त डेटा गोपनीयता कानून (जैसे, यूरोपीय संघ का डिजिटल सेवा अधिनियम) और कार्बन उत्सर्जन नियम व्यवसायों के लिए चुनौतियाँ पैदा कर रहे हैं, लेकिन अनुपालन प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा दे रहे हैं।

- श्रम बाजार गतिशीलता: हाइब्रिड कार्य मॉडल बने हुए हैं, लेकिन प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य सेवा जैसे कुशल क्षेत्रों में श्रम की कमी मजदूरी और परिचालन लागत पर दबाव डाल रही है।


 3. वित्तीय परिदृश्य

3.1. पूंजी बाजार

- शेयर बाजार में अस्थिरता: ब्याज दरों में वृद्धि और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण इक्विटी बाजार अस्थिर बने हुए हैं। S&P 500 और अन्य प्रमुख सूचकांक मामूली लाभ दिखा रहे हैं, जिसमें तकनीक और हरित ऊर्जा स्टॉक बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।

- बॉन्ड यील्ड: सरकारी बॉन्ड यील्ड, जैसे कि यूएस 10-वर्षीय ट्रेजरी, 4.5% के आसपास हैं, जो निवेशकों की सतर्कता और मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को दर्शाता है।

- क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल संपत्तियाँ: प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में नियामक स्पष्टता के बाद क्रिप्टो बाजार स्थिर हो रहे हैं। बिटकॉइन और एथेरियम में नई रुचि देखी जा रही है, और संस्थागत अपनापन बढ़ रहा है।


3.2. कॉरपोरेट वित्त

- पूंजी तक पहुंच: उच्च ब्याज दरें उधार लागत बढ़ा रही हैं, जिससे छोटे और मध्यम उद्यम (SMEs) पर दबाव पड़ रहा है। स्टार्टअप्स के लिए वेंचर कैपिटल फंडिंग में कमी आई है, जिसमें लाभप्रदता पर ध्यान केंद्रित है।

- विलय और अधिग्रहण (M&A): वित्तपोषण चुनौतियों के कारण M&A गतिविधि धीमी हुई है, लेकिन AI, बायोटेक और नवीकरणीय ऊर्जा में रणनीतिक अधिग्रहण जारी हैं।

- कॉरपोरेट कर्ज: वैश्विक कॉरपोरेट कर्ज स्तर $80 ट्रिलियन पर स्थिर हो गया है, लेकिन उच्च कर्ज वाले फर्मों को उच्च ब्याज दरों के माहौल में पुनर्वित्त जोखिम का सामना करना पड़ रहा है।


 3.3. बैंकिंग और वित्तीय सेवाएँ

- डिजिटल परिवर्तन: फिनटेक अपनापन बढ़ रहा है, जिसमें डिजिटल भुगतान और नियोबैंक बाजार हिस्सेदारी हासिल कर रहे हैं। ब्लॉकचेन-आधारित समाधान क्रॉस-बॉर्डर लेनदेन के लिए लोकप्रिय हो रहे हैं।

- जोखिम प्रबंधन: बढ़ते साइबर खतरों और नियामक जांच के जवाब में बैंक साइबरसुरक्षा और अनुपालन ढांचों को मजबूत कर रहे हैं।

- उपभोक्ता बैंकिंग: बढ़ती ब्याज दरें बैंक मार्जिन को बढ़ा रही हैं, लेकिन बंधक और उपभोक्ता ऋण की मांग को कम कर रही हैं।


4. व्यवसायों के सामने चुनौतियाँ

- लागत दबाव: बढ़ती ऊर्जा, श्रम और कच्चे माल की लागत लाभ मार्जिन को कम कर रही है, विशेष रूप से विनिर्माण और खुदरा क्षेत्रों में।

- प्रतिभा प्रतिधारण: कुशल श्रमिकों के लिए प्रतिस्पर्धा तेज हो रही है, जिसमें कर्मचारी लचीलापन और उद्देश्य-प्रेरित कार्य को प्राथमिकता दे रहे हैं।

- जलवायु जोखिम: चरम मौसम की घटनाएँ और नियामक दबाव व्यवसायों को लचीलापन और टिकाऊ प्रथाओं में निवेश करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।

- भू-राजनीतिक अनिश्चितता: व्यापार युद्ध, प्रतिबंध और राजनीतिक अस्थिरता आपूर्ति श्रृंखलाओं और बाजार पहुंच को बाधित कर रहे हैं।


5. विकास के अवसर

- प्रौद्योगिकी नवाचार: AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G दक्षता लाभ और नए व्यावसायिक मॉडल के लिए अवसर पैदा कर रहे हैं।

- स्थिरता के रूप में प्रतिस्पर्धी लाभ: हरित प्रथाओं को अपनाने वाली कंपनियाँ पर्यावरण के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं और निवेशकों को आकर्षित कर रही हैं।

- उभरते बाजार: अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में तेजी से शहरीकरण और डिजिटल अपनापन उपभोक्ता सामान और तकनीकी फर्मों के लिए विकास की संभावनाएँ प्रदान कर रहा है।

- पुनर्कौशल पहल: कार्यबल विकास में निवेश प्रतिभा को उभरती उद्योग आवश्यकताओं के साथ संरेखित करता है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है।


6. रणनीतिक सिफारिशें

- आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता: व्यवसायों को भू-राजनीतिक और लॉजिस्टिक जोखिमों को कम करने के लिए क्षेत्रीय सोर्सिंग का पता लगाना चाहिए।

- डिजिटलीकरण को अपनाएँ: AI और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग परिचालन को अनुकूलित करने और ग्राहक अनुभव को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।

- ESG लक्ष्यों को प्राथमिकता दें: पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) रणनीतियाँ निवेशकों को आकर्षित करती हैं और उपभोक्ता मूल्यों के साथ संरेखित होती हैं।

- मौद्रिक नीति पर नजर रखें: केंद्रीय बैंक की कार्रवाइयों के जवाब में चपलता बनाए रखने से वित्तपोषण और निवेश जोखिमों को प्रबंधित करने में मदद मिलती है।


7. निष्कर्ष

2025 में व्यावसायिक और वित्तीय परिदृश्य चुनौतियों और अवसरों का मिश्रण है। मुद्रास्फीति दबाव, उच्च ब्याज दरें और भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ लचीलापन की परीक्षा ले रही हैं, वहीं प्रौद्योगिकी प्रगति और स्थिरता पहल विकास के रास्ते प्रदान कर रही हैं। जो व्यवसाय इन गतिशीलताओं के साथ चपलता और दूरदर्शिता के साथ अनुकूलन करेंगे, वे इस विकसित पर्यावरण में फलेंगे-फूलेंगे।



Ambuj Kumar

Founder 

Shrikhand Group

Friday, January 3, 2025

गट-ब्रेन कनेक्शन : जानिए आपका पेट कैसे करता है आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित

 



आप जो खाते हैं उसका सीधा असर आपके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। जानकर आश्चर्य हुआ? इसके बारे में और जानने के लिए आगे पढ़ें।


आज एक बहुत बड़ी आबादी है, जो मानसिक बीमारियों से पीड़ित हो रही है। 10 प्रतिशत से अधिक लोग किसी न किसी समस्या से पीड़ित हैं। चिंता मत करिये हम यहां समस्या के बारे में बात करने के लिए नहीं हैं, बल्कि समाधान के बारे में बात करने आये हैं। विभिन्न मानसिक बीमारियों से निपटने के लिए दुनिया भारत और आयुर्वेद की ओर देख रही है।



आपका माइक्रोबायोम – आपके गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) पथ में रहने वाले जीव (सूक्ष्मजीव) आपकी गट हेल्थ में और आपके समग्र स्वास्थ्य के लिए, त्वचा की गंभीर समस्याओं से लेकर मोटापे तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

हम में से अधिकांश लोग अपने पेट में गड़बड़ महसूस करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपकी गट आपके मस्तिष्क से भावनात्मक संकेतों का जवाब देती है। इसे ही गट-ब्रेन संबंध के रूप में जाना जाता है।


अपने मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के तरीके

अपने आप को महत्व दें

विचारशीलता और सम्मान के साथ खुद से व्यवहार करें, और आत्म-विश्लेषण से दूर रहें। अपने सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले कार्यों के लिए कुछ मिनट निर्धारित करें, या अपने दृष्टिकोण का विस्तार करें। प्रतिदिन एक पहेली सुलझाने में व्यस्त रहें, कोई कविता-गीत गाएं, नृत्य कक्षाएं लें, यह पता लगाएं कि कोई वाद्य यंत्र कैसे बजाया जाता है या किसी अन्य भाषा को सीखना शुरू करें।


अपने शरीर से निपटें

अपने शरीर के साथ व्यवहार करने से आपके मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। यह सुनिश्चित कर लें:

पौष्टिक भोजन का सेवन करें। धूम्रपान से परहेज़ करें और पानी की भरपूर मात्रा पियें, व्यायाम करें, जिससे उदासी और तनाव में कमी आती है, और आपकी मानसिक स्थिति में सुधार होता है।

क्या दोष असंतुलन का कारण बनते हैं?

जीवनशैली में परिवर्तन वात दोष को कम कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, देर से सोना, बिगड़ा हुआ टाइमटेबल, ठंडी जलवायु, बहुत सारे काम और खाने का गलत रुटीन सभी वात दोष का कारण बनते हैं। यहां कुछ बुनियादी आयुर्वेदिक उपचार दिए गए हैं जो आपके दोषों को समायोजित करके आपकी बेचैनी को शांत करने में मदद कर सकते हैं।


महामारी में तनाव और चिंता को कैसे कम करें

पौष्टिक खाना

कोशिश करके ऐसे भोजन का सेवन करें जो जीवन काल को बढ़ाने में मदद करता है। च्यवनप्राश, सूखे मेवे, अखरोट, दूध, चावल, ज्वार, बाजरा और कोई भी अन्य स्वस्थ भोजन जिसमें सभी पोषक तत्व होते हैं।

संक्षेप में, आपके भोजन में तरल पदार्थ और दाल चावल, स्वादिष्ट करी शामिल होनी चाहिए। इसमें घी जैसी स्‍वस्‍थ वसा शामिल होनी चाहिए। विभिन्न सब्जियां, दूध, फल, खट्टे फल, गाय का दूध, घी, छाछ भी हृदय के लिए अच्छे होते हैं। इनका सेवन अवश्य करना चाहिए।


यहां कुछ उपचार दिए गए हैं जिन्हें आप आजमा सकते हैं:

1. पंचकर्म चिकित्सा

– शिरोधारा और नस्य जैसी पंचकर्म चिकित्सा मानसिक विकारों के प्रबंधन में मदद करती है।

– आयुर्वेद, अध्यात्म और योग प्रभावी हैं। वे न केवल मानसिक विकारों को ठीक करते हैं, बल्कि मानव मन के चमत्कारों में भी मदद कर सकते हैं। सुनिश्चित करें कि आप अपनी आत्मा को महसूस कर रहे हैं।


2. अरोमा थेरेपी

कुछ सुगंधों का वात दोष पर शांत प्रभाव पड़ता है। आप अपने डिफ्यूजर में तुलसी, संतरा, लौंग और लैवेंडर का तेल मिला सकते हैं। पानी में कुछ बूंदों को मिलाकर साफ कर सकते हैं और आराम कर सकते हैं।

आप ब्रीदिंग की कोशिश भी कर सकते हैं, प्राणायाम भी करें- यह घबराहट को शांत करता है और शरीर और मन को शांत करता है।



Friday, May 31, 2024

प्रधानमंत्री मोदी का मौन व्रत रोकवाने अभिषेक मनु सिंहवी पहुंचे चुनाव आयोग के द्वार!




प्रधानमंत्री मोदी का मौन व्रत रोकवाने अभिषेक मनु सिंहवी पहुंचे चुनाव आयोग के द्वार! अभी कितना और करेंगे पापाचार?


राम मंदिर निर्माण में जितना ज्यादा अड़चन लगा सकते थे, लगाए।


राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए निमंत्रण मिलने के बाद भी नहीं गए। जो गए, उन्हे पार्टी से निकाल दिया। अब इन्हें पूजा पाठ, योग, ध्यान से भी समस्या है। यह मोदी का व्यक्तिगत मामला है। कांग्रेस को इसमें भी समस्या? इन्हें लग रहा कि ये आचार संहिता का उल्लंघन है! इससे मोदी को अपरोक्ष रूप से मीडिया का प्रसारण मिल जायेगा! बहरहाल...


दो नरेन्द्रों की कन्याकुमारी यात्रा: एक ऐतिहासिक पुनरुक्ति


2019 में अंतिम मतदान की पूर्व संध्या को प्रधानसेवक बाबा केदार के दरबार में उपस्थित हुए थे, यहीं उन्होंने ध्यान लगाया था। बहुत दिनों से सोच रहा था कि इस बार वे किस धाम में ध्यान धरेंगे। पर आज जब पता चला कि वे उसी दिव्य शिला पर जाएंगे जहाँ देवी कन्याकुमारी के चरणचिह्न अंकित हैं और जिस शिला ने सोए हुए हिन्दूराष्ट्र को हिला कर रख दिया था, और जहाँ पर स्वामी विवेकानन्द ने ध्यान किया है, तो उस स्थान के भव्य इतिहास को स्मरण कर मेरा रोम रोम अनेक प्रकार की भावनाओं से भर गया। 


131 साल पहले सम्पूर्ण देश में घूमता हुआ भ्रमणशील संन्यासी भारत के दक्षिणी अंतिम छोर पर पहुंचा जहाँ पर प्राचीनकाल से भगवती कन्याकुमारी का शक्तिपीठ स्थित है। संन्यासी माँ के चरणों में गिर पड़ा। वहीं समुद्र में दो चट्टानें हैं जो भूमि से अलग हो गई हैं। शिला तक पहुँचने का कोई दूसरा उपाय न देख संन्यासी ने समुद्र में छलांग लगा दी। चट्टान पर 1892 की 25, 26 और 27 दिसम्बर को माँ के श्रीचरणों में संन्यासी ने ध्यान किया। भारतभूमि का अतीत, वर्तमान और भविष्य संन्यासी के चित्त पर चित्रपट की तरह चल पड़ा, और उनको उद्घाटित हुआ भारत की दीनता का मूल कारण और उसका समाधान। ईश्वर द्वारा निर्दिष्ट ध्येय का उन्हें साक्षात्कार हुआ। 


चारों और समुद्र की उत्ताल प्रचण्ड तरंगों के बीच भारत की पीड़ा से क्लांत संन्यासी का व्यग्र मन शांत हो गया। वह कोई और नहीं, स्वामी विवेकानंद थे और स्थान था जिसे आज कन्याकुमारी की विवेकानंद शिला कहते हैं। दक्षिणी छोर पर उन्मुक्त घोषणा करती वह शिला, “भारत हिन्दूओं का है।”, चार धामों के बाद हिन्दू जनमानस का पांचवा धाम बन गयी है। अपने में समेटे हुए हिन्दूओं की विजय का इतिहास, आक्रान्ताओं की धूर्तता का चित्र और हिन्दू धर्म के सतत् संघर्ष की कहानी।


1963 को विवेकानंद जन्मशताब्दी समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक दत्ताजी दिदोलकर को प्रेरणा हुई कि इस शिला का नाम विवेकानंद शिला रखना चाहिए और उसपर स्वामीजी की एक प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। कन्याकुमारी के हिन्दुओं में भारी उत्साह हुआ और उन्होंने एक समिति गठित करली। स्वामी चिद्भवानंद जी इस कार्य में जुट गये। पर इस मांग से तमिलनाडू के मिशनरी घबरा उठे, और डरने लगे कि कहीं यह काम हिन्दुओं में हिन्दुत्व की भावना न भर दे, मिशन की राह में यह प्रस्ताव उन्हें बड़ा रोड़ा लगा। 


मिशनरी तुरंत एक्शन में आ गए। चर्च ने उस शिला को विवेकानंद शिला की बजाय ‘सेंट जेवियर रॉक’ नाम दे दिया और मिथक गढ़ा कि सोलहवीं शताब्दी में सेंट जेवियर इस शिला पर आये थे। शिला पर अपना अधिकार सिद्ध करने के लिए वहां चर्च के प्रतीक चिन्ह ‘क्रॉस’ की एक प्रतिमा भी स्थापित कर दी और चट्टान पर क्रॉस के चिन्ह बना दिए। मतान्तरित नाविकों ने हिन्दूओं को समुद्र तट से शिला तक ले जाने से मना कर दिया। ध्यान दें कि वह मिशनरी कौन था, जिसके नाम पर आज तक भारत में हजारों कान्वेंट स्कूल चलते हैं? 


1542 में पुर्तगाल के राजा और पोप की मदद से फ्रांसिस जेवियर भारत पहुंचा था। उस समय गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार हो चुका था और मिशन अपने मतान्तरण के कार्य में लगा था। हिन्दुओं से उसकी घृणा का आलम यह था कि एक जगह जेवियर कहता है, “हिन्दू एक अपवित्र जाति है, इन काले लोगों के भगवान भी काले हैं इसलिए ये उनकी काली मूर्तियाँ बनाते हैं। ये अपनी मूर्तियों पर तेल मलते हैं, जिससे दुर्गन्ध आती है और इनकी गंदी मूर्तियाँ बदसूरत और डरावनी होती हैं।” 


मूर्तियों, और कर्मकांड के कारण हिन्दुओं का मतान्तरण कठिन था, इसलिए उस मिशनरी ने गोवा की पुर्तगाल सरकार के वायसराय एंटोनी के साथ मिलकर हिन्दू मन्दिरों को गिराने का आदेश दे दिया। तलवार की नोंक पर धर्मांतरण करवाए गये, मन्दिर गिराने के बावजूद हिन्दू मूर्तियों पर आश्रित थे और घरों में मूर्तिपूजन करते थे। इससे मूर्तिपूजा पर उसने रोक लगवा दी।


सारस्वत ब्राह्मणों को उसने जिन्दा जलवाया, जो विश्वास न लाया उसे बीच में से कटवा दिया, बपतिस्मा न पढ़ने वाले की जीभ कटवा दी, 15 वर्ष तक के सभी हिन्दुओं के लिए ईसाई शिक्षा लेना अनिवार्य कर दिया, उनके मुंह में गोमांस ठूंसा गया, वेदपाठ पर पाबंदी लगा दी, लोगों के जनेऊ तोड़ दिए गए, पुर्तगालियों ने हिन्दू स्त्रियों के बलात्कार किए, अरब यूरोप की वासना शांत करने स्त्रियों को जहाजों पर लाद दिया जाता, कितनी ही स्त्रियों ने समुद्र के जलचरों का कूदकर वरण किया था, लोहे की छड़ियों से स्त्रियों के स्तन विकृत किए जाते, योनि और गुदा में गर्म सरिये डाले जाते, नाख़ून उखाडकर कीलें चुभोई जातीं।


हिन्दू विवाह और कर्मकांडों पर रोक लगा दी, जो सार्वजनिक अनुष्ठान करता पाया जाता उसकी खाल उधेडी जाती, आँखें गर्म सरियों से फोड़ी जातीं, चीमटों से मांस खींचा जाता। बार्देज़ के 300 हिन्दू मन्दिर ध्वस्त किए, दो ही दशकों में अस्लोना और कंकोलिम मन्दिर विहीन हो गये, सारे देवी देवता नष्ट हो गये, केवल श्रीमंगेश और शांता भवानी अपने स्थान पर स्थिर थे। यह सब इतिहास ग्रन्थों में सुरक्षित तथ्य हैं, जिसका सावरकर ने "गोमान्तक" में विस्तार से वर्णन किया है। आज दलित समाज को कितना ही भ्रमित करने की कोशिश करे सच्चाई तो यह है कि दस्तावेजों के अनुसार गोआ इंकविजिशन में मारे गए लोगों में सबसे अधिक 36 प्रतिशत शूद्र हिन्दू थे।


हिन्दुओं को ईसाई बनाते समय उनके पूजा स्थलों को, उनकी मूर्तियों को तोड़ने में जेवियर को कितनी अत्यंत प्रसन्नता होती थी यह उसके ही कथन से देखिए, “जब सभी का धर्म परिवर्तन हो जाता है तब मैं उन्हें यह आदेश देता हूँ कि झूठे भगवान् के मंदिर गिरा दिए जाएँ और मूर्तियाँ तोड़ दी जाएँ। जो कल तक उनकी पूजा करते थे उन्हीं लोगों द्वारा मंदिर गिराए जाने तथा मूर्तियों को चकनाचूर किये जाने के दृश्य को देखकर मुझे जो प्रसन्नता होती है उसको शब्दों में बयान करना मैं नहीं जनता"। इस सबके बदले ऐसे व्यक्ति को संत की उपाधि से नवाजा गया था।

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मिशनरियों द्वारा शिला स्मारक का निर्माण रोकने हेतु जो भी बाधा खड़ी की गई पर हिन्दू वीर रुके नहीं, स्वयंसेवक बालन और लक्ष्मण समुद्र में कूदकर शिला तक पहुँच गये, एक रात रहस्यमयी तरीके से क्रॉस गायब हो गये। पूरे जिले में संघर्ष की तनाव भरी स्थिति पैदा हो गयी और राज्य कांग्रेस सरकार ने धारा 144 लागू करदी। कांग्रेस के मुख्यमंत्री भक्तवत्सलम धार्मिक थे और कांची शंकर में गाढ़ आस्था रखते थे पर दलीय स्वार्थ वोटबैंक के लिए चर्च को नाराज नहीं करना चाहते थे। पर दत्ता जी की प्रेरणा से मन्मथ पद्मनाभन की अध्यक्षता में अखिल भारतीय विवेकानंद शिला स्मारक समिति का गठन हुआ और घोषणा हुई कि 12 जनवरी, 1963 से आरंभ होने वाले स्वामी विवेकानंद जन्म शताब्दी वर्ष की पूर्णाहुति होने तक वे शिला पर उनकी प्रतिमा की स्थापना कर देंगे।


समिति ने 17 जनवरी, 1963 को शिला पर एक प्रस्तर पट्टी स्थापित कर दी। किन्तु 16 मई, 1963 को इस पट्टिका को रात के अंधेरे में उपद्रवियों ने तोड़कर समुद्र में फेंक दिया। स्थिति फिर बहुत तनावपूर्ण हो गयी। स्थिति नियन्त्रण से बाहर होने पर तत्कालीन सरसंघचालक परमपूजनीय श्रीगुरुजी को आगे आना पड़ा। श्रीगुरुजी ने सरकार्यवाह एकनाथ रानाडे जी को यह कार्य सौंपा। एकनाथ जी विवेकानंद वांग्मय में आकंठ डूबे हुए थे। रामकृष्ण मिशन के स्वामी माधवानंद जी से आशीर्वाद लेकर वे जीजान से जुट गये। एकनाथ रानाडे जी द्वारा विवेकानन्द साहित्य के मंथन से एक ऐसी पुस्तक निकली, “हे हिन्दुराष्ट्र! उत्तिष्ठत! जाग्रत!” जो आज हिन्दूराष्ट्र की मार्गदर्शिका बन गयी है।


तमिलनाडु मुख्यमंत्री भक्तवत्सलम तो स्मारक के पक्ष में थे, पर केन्द्रीय संस्कृति मंत्री हुमांयू कबीर पर्यावरण आदि का बहाना बनाकर रोड़े अटका रहे थे। हुमांयू बंगाल के थे और पूरा बंगाल कन्याकुमारी में विवेकानंद स्मारक के लिए लालायित था। एकनाथ रानाडे जी ने हुमांयू कबीर के सारे हथकंडे सावर्जनिक कर दिए जिससे हुमांयू का भारी विरोध हुआ। अब हुमांयू के हाथ से स्थिति निकल गयी थी। पर जवाहरलाल नेहरु की अनुमति के बिना कुछ भी सम्भव न था, और उनका हिन्दूविरोध जगजाहिर ही था।


एकनाथ जी इसके लिए शास्त्री जी के पास गये जो स्मारक निर्माण के पक्ष में थे। शास्त्री जी के समर्थन से एकनाथ जी ने 323 सांसदों के समर्थन पत्र केवल 3 दिन में हासिल किए, जिसमें कम्युनिस्ट से लेकर मुसलमान तक शामिल थे, जो किसी न किसी तरह स्वामीजी का सम्मान करते थे। पीएम नेहरू को जब इतने सांसदों का हस्ताक्षर पत्र मिला तो वे भक्तवत्सलम जी को स्मारक की सहमति देने के लिए बाध्य हो गये। फिर भी भक्तवत्सलम और विवेकानंद समिति के बीच स्मारक के आकार, भव्यता आदि को लेकर विवाद चलता रहा।


इस बीच मिशनरियों ने मार्ग में रुकावट डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। समिति जहाँ भव्य स्मारक चाहती थी वहीं भक्तवत्स्लम केवल एक छोटे स्मारक के लिए अड़े थे। पर एकनाथ रानाडे जी सभी अवरोधों को पार करते रहे और सामंजस्य बिठाकर एक भव्य स्मारक का निर्माण करवाया, जिसमें ध्यान मंडप, भगवा ध्वज, देवीजी के श्रीचरण, ॐ की प्रतिमा शामिल हुए। मिशनरियों ने स्मारक के ठीक सामने समुद्रतट पर तीन तीन बड़े चर्चों का निर्माण कर अपनी खिसियानपट जाहिर की। पर अंत में हिन्दू समाज की विजय हुई और भारत के दक्षिणतम छोर पर बड़ी शान से ॐ अंकित भगवा ध्वज फहरा रहा है, जो संदेश दे रहा है कि “भारत हिन्दुओं का था, हिन्दुओं का है, हिन्दुओं का रहेगा।”


इसी पावन स्थल पर अब फिर से एक नरेन्द्र पहुँच रहे हैं और भगवती के चरणों में ध्यान करेंगे, इस ध्यान से भी वैसा भी अमृत निकलेगा जो 131 साल पहले स्वामी विवेकानंद के अंतर्मन में प्रकट हुआ और जिसके आधार पर क्रांतिकारियों की एक लम्बी श्रृंखला से लेकर सत्ता में हिन्दू विचारधारा के पुनर्स्थापन में स्वयं को आहूत करने वाले अनेक रत्न पैदा हुए। प्रधान सेवक के राष्ट्र को अगले 1000 वर्षों की दिशा देने वाले कार्यों का आरम्भ भगवती कन्याकुमारी के आशीर्वाद से होगा।

Tuesday, April 23, 2024

प्राकृतिक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या :-

 


प्राकृतिक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या :-


1. प्रातः (Morning) 03:00 से 05:00 –

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से फेफड़ो (Lungs) में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना उपयुक्त है । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहनेवालो का जीवन निस्तेज हो जाता है ।


2. प्रातः 05:00 से 07:00 – 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से आंत (Large Intestine) में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 07:00 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान कर लेना चाहिए । सुबह 07:00 के बाद जो मल – त्याग करते है उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।


3. प्रातः 07:00 से 09:00 – 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से आमाशय (Stomach) में होती है। यह समय भोजन के लिए उपयुक्त है । इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं।


4. प्रातः 09:00 से 11:00 –

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से तिल्ली (Spleen) में होती है। यह पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने का कार्य करता है तथा रक्त का संचित भंडार भी है। यह रोग निरोधक तंत्र का एक भाग है। मानव में तिल्ली पेट में स्थित रहता है


5. प्रातः 11:00 से दोपहर (Noon) 01:00 – 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से हृदय (Heart) में होती है। दोपहर 12:00 बजे के आस–पास मध्याह्न में आराम करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसीलिए भोजन वर्जित है। इस समय तरल पदार्थ ले सकते है। जैसे मट्ठा पी सकते है। दही खा सकते है ।


6. दोपहर 01:00 से 03:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से छोटी आँत (Small Intestine) में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है।


7. दोपहर 03:00 से 05:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से मूत्राशय (Urinary Bladder) में होती है । 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।


8. शाम (Evening) 05:00 से 07:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से गुर्दे (Kidney) में होती है। इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए। शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन न करें। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते हैं देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।

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9. रात्रि (Night) 07:00 से 09:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क (Brain) में होती है । इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है । आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टि हुई है।


10. रात्रि 09:00 से 11:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी (Spine cord) में स्थित मेरुरज्जु (केंद्रीय नाड़ी संस्‍थान का वह भाग जो कशेरुका-नाल के भीतर स्थित रहता है) में होती है। इस समय पीठ के बल विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है ।

इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है ।

यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।


11. रात्रि 11:00 से 01:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से पित्ताशय (Gall Bladder) में होती है । इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा , नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएँ बनती हैं ।


12. रात्रि 01:00 से 03:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से लीवर (Liver) में होती है । अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है । इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं।


नोट :-


1. ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखें जिससे ऊपर बताए भोजन के समय में खुलकर भूख लगे। जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने में पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है।


2. पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें, अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हैं।


3. आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की प्राकृतिक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा। इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ्य की प्राप्ति करा देगी।

काशी में मणिकर्णिका घाट पर चिता जब शांत हो जाती है तब ………

काशी में मणिकर्णिका घाट पर चिता जब शांत हो जाती है तब  मुखाग्नि देने वाला व्यक्ति चिता भस्म पर 94 लिखता है।  यह सभी को नहीं मालू...