Friday, May 31, 2024

प्रधानमंत्री मोदी का मौन व्रत रोकवाने अभिषेक मनु सिंहवी पहुंचे चुनाव आयोग के द्वार!




प्रधानमंत्री मोदी का मौन व्रत रोकवाने अभिषेक मनु सिंहवी पहुंचे चुनाव आयोग के द्वार! अभी कितना और करेंगे पापाचार?


राम मंदिर निर्माण में जितना ज्यादा अड़चन लगा सकते थे, लगाए।


राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए निमंत्रण मिलने के बाद भी नहीं गए। जो गए, उन्हे पार्टी से निकाल दिया। अब इन्हें पूजा पाठ, योग, ध्यान से भी समस्या है। यह मोदी का व्यक्तिगत मामला है। कांग्रेस को इसमें भी समस्या? इन्हें लग रहा कि ये आचार संहिता का उल्लंघन है! इससे मोदी को अपरोक्ष रूप से मीडिया का प्रसारण मिल जायेगा! बहरहाल...


दो नरेन्द्रों की कन्याकुमारी यात्रा: एक ऐतिहासिक पुनरुक्ति


2019 में अंतिम मतदान की पूर्व संध्या को प्रधानसेवक बाबा केदार के दरबार में उपस्थित हुए थे, यहीं उन्होंने ध्यान लगाया था। बहुत दिनों से सोच रहा था कि इस बार वे किस धाम में ध्यान धरेंगे। पर आज जब पता चला कि वे उसी दिव्य शिला पर जाएंगे जहाँ देवी कन्याकुमारी के चरणचिह्न अंकित हैं और जिस शिला ने सोए हुए हिन्दूराष्ट्र को हिला कर रख दिया था, और जहाँ पर स्वामी विवेकानन्द ने ध्यान किया है, तो उस स्थान के भव्य इतिहास को स्मरण कर मेरा रोम रोम अनेक प्रकार की भावनाओं से भर गया। 


131 साल पहले सम्पूर्ण देश में घूमता हुआ भ्रमणशील संन्यासी भारत के दक्षिणी अंतिम छोर पर पहुंचा जहाँ पर प्राचीनकाल से भगवती कन्याकुमारी का शक्तिपीठ स्थित है। संन्यासी माँ के चरणों में गिर पड़ा। वहीं समुद्र में दो चट्टानें हैं जो भूमि से अलग हो गई हैं। शिला तक पहुँचने का कोई दूसरा उपाय न देख संन्यासी ने समुद्र में छलांग लगा दी। चट्टान पर 1892 की 25, 26 और 27 दिसम्बर को माँ के श्रीचरणों में संन्यासी ने ध्यान किया। भारतभूमि का अतीत, वर्तमान और भविष्य संन्यासी के चित्त पर चित्रपट की तरह चल पड़ा, और उनको उद्घाटित हुआ भारत की दीनता का मूल कारण और उसका समाधान। ईश्वर द्वारा निर्दिष्ट ध्येय का उन्हें साक्षात्कार हुआ। 


चारों और समुद्र की उत्ताल प्रचण्ड तरंगों के बीच भारत की पीड़ा से क्लांत संन्यासी का व्यग्र मन शांत हो गया। वह कोई और नहीं, स्वामी विवेकानंद थे और स्थान था जिसे आज कन्याकुमारी की विवेकानंद शिला कहते हैं। दक्षिणी छोर पर उन्मुक्त घोषणा करती वह शिला, “भारत हिन्दूओं का है।”, चार धामों के बाद हिन्दू जनमानस का पांचवा धाम बन गयी है। अपने में समेटे हुए हिन्दूओं की विजय का इतिहास, आक्रान्ताओं की धूर्तता का चित्र और हिन्दू धर्म के सतत् संघर्ष की कहानी।


1963 को विवेकानंद जन्मशताब्दी समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक दत्ताजी दिदोलकर को प्रेरणा हुई कि इस शिला का नाम विवेकानंद शिला रखना चाहिए और उसपर स्वामीजी की एक प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। कन्याकुमारी के हिन्दुओं में भारी उत्साह हुआ और उन्होंने एक समिति गठित करली। स्वामी चिद्भवानंद जी इस कार्य में जुट गये। पर इस मांग से तमिलनाडू के मिशनरी घबरा उठे, और डरने लगे कि कहीं यह काम हिन्दुओं में हिन्दुत्व की भावना न भर दे, मिशन की राह में यह प्रस्ताव उन्हें बड़ा रोड़ा लगा। 


मिशनरी तुरंत एक्शन में आ गए। चर्च ने उस शिला को विवेकानंद शिला की बजाय ‘सेंट जेवियर रॉक’ नाम दे दिया और मिथक गढ़ा कि सोलहवीं शताब्दी में सेंट जेवियर इस शिला पर आये थे। शिला पर अपना अधिकार सिद्ध करने के लिए वहां चर्च के प्रतीक चिन्ह ‘क्रॉस’ की एक प्रतिमा भी स्थापित कर दी और चट्टान पर क्रॉस के चिन्ह बना दिए। मतान्तरित नाविकों ने हिन्दूओं को समुद्र तट से शिला तक ले जाने से मना कर दिया। ध्यान दें कि वह मिशनरी कौन था, जिसके नाम पर आज तक भारत में हजारों कान्वेंट स्कूल चलते हैं? 


1542 में पुर्तगाल के राजा और पोप की मदद से फ्रांसिस जेवियर भारत पहुंचा था। उस समय गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार हो चुका था और मिशन अपने मतान्तरण के कार्य में लगा था। हिन्दुओं से उसकी घृणा का आलम यह था कि एक जगह जेवियर कहता है, “हिन्दू एक अपवित्र जाति है, इन काले लोगों के भगवान भी काले हैं इसलिए ये उनकी काली मूर्तियाँ बनाते हैं। ये अपनी मूर्तियों पर तेल मलते हैं, जिससे दुर्गन्ध आती है और इनकी गंदी मूर्तियाँ बदसूरत और डरावनी होती हैं।” 


मूर्तियों, और कर्मकांड के कारण हिन्दुओं का मतान्तरण कठिन था, इसलिए उस मिशनरी ने गोवा की पुर्तगाल सरकार के वायसराय एंटोनी के साथ मिलकर हिन्दू मन्दिरों को गिराने का आदेश दे दिया। तलवार की नोंक पर धर्मांतरण करवाए गये, मन्दिर गिराने के बावजूद हिन्दू मूर्तियों पर आश्रित थे और घरों में मूर्तिपूजन करते थे। इससे मूर्तिपूजा पर उसने रोक लगवा दी।


सारस्वत ब्राह्मणों को उसने जिन्दा जलवाया, जो विश्वास न लाया उसे बीच में से कटवा दिया, बपतिस्मा न पढ़ने वाले की जीभ कटवा दी, 15 वर्ष तक के सभी हिन्दुओं के लिए ईसाई शिक्षा लेना अनिवार्य कर दिया, उनके मुंह में गोमांस ठूंसा गया, वेदपाठ पर पाबंदी लगा दी, लोगों के जनेऊ तोड़ दिए गए, पुर्तगालियों ने हिन्दू स्त्रियों के बलात्कार किए, अरब यूरोप की वासना शांत करने स्त्रियों को जहाजों पर लाद दिया जाता, कितनी ही स्त्रियों ने समुद्र के जलचरों का कूदकर वरण किया था, लोहे की छड़ियों से स्त्रियों के स्तन विकृत किए जाते, योनि और गुदा में गर्म सरिये डाले जाते, नाख़ून उखाडकर कीलें चुभोई जातीं।


हिन्दू विवाह और कर्मकांडों पर रोक लगा दी, जो सार्वजनिक अनुष्ठान करता पाया जाता उसकी खाल उधेडी जाती, आँखें गर्म सरियों से फोड़ी जातीं, चीमटों से मांस खींचा जाता। बार्देज़ के 300 हिन्दू मन्दिर ध्वस्त किए, दो ही दशकों में अस्लोना और कंकोलिम मन्दिर विहीन हो गये, सारे देवी देवता नष्ट हो गये, केवल श्रीमंगेश और शांता भवानी अपने स्थान पर स्थिर थे। यह सब इतिहास ग्रन्थों में सुरक्षित तथ्य हैं, जिसका सावरकर ने "गोमान्तक" में विस्तार से वर्णन किया है। आज दलित समाज को कितना ही भ्रमित करने की कोशिश करे सच्चाई तो यह है कि दस्तावेजों के अनुसार गोआ इंकविजिशन में मारे गए लोगों में सबसे अधिक 36 प्रतिशत शूद्र हिन्दू थे।


हिन्दुओं को ईसाई बनाते समय उनके पूजा स्थलों को, उनकी मूर्तियों को तोड़ने में जेवियर को कितनी अत्यंत प्रसन्नता होती थी यह उसके ही कथन से देखिए, “जब सभी का धर्म परिवर्तन हो जाता है तब मैं उन्हें यह आदेश देता हूँ कि झूठे भगवान् के मंदिर गिरा दिए जाएँ और मूर्तियाँ तोड़ दी जाएँ। जो कल तक उनकी पूजा करते थे उन्हीं लोगों द्वारा मंदिर गिराए जाने तथा मूर्तियों को चकनाचूर किये जाने के दृश्य को देखकर मुझे जो प्रसन्नता होती है उसको शब्दों में बयान करना मैं नहीं जनता"। इस सबके बदले ऐसे व्यक्ति को संत की उपाधि से नवाजा गया था।

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मिशनरियों द्वारा शिला स्मारक का निर्माण रोकने हेतु जो भी बाधा खड़ी की गई पर हिन्दू वीर रुके नहीं, स्वयंसेवक बालन और लक्ष्मण समुद्र में कूदकर शिला तक पहुँच गये, एक रात रहस्यमयी तरीके से क्रॉस गायब हो गये। पूरे जिले में संघर्ष की तनाव भरी स्थिति पैदा हो गयी और राज्य कांग्रेस सरकार ने धारा 144 लागू करदी। कांग्रेस के मुख्यमंत्री भक्तवत्सलम धार्मिक थे और कांची शंकर में गाढ़ आस्था रखते थे पर दलीय स्वार्थ वोटबैंक के लिए चर्च को नाराज नहीं करना चाहते थे। पर दत्ता जी की प्रेरणा से मन्मथ पद्मनाभन की अध्यक्षता में अखिल भारतीय विवेकानंद शिला स्मारक समिति का गठन हुआ और घोषणा हुई कि 12 जनवरी, 1963 से आरंभ होने वाले स्वामी विवेकानंद जन्म शताब्दी वर्ष की पूर्णाहुति होने तक वे शिला पर उनकी प्रतिमा की स्थापना कर देंगे।


समिति ने 17 जनवरी, 1963 को शिला पर एक प्रस्तर पट्टी स्थापित कर दी। किन्तु 16 मई, 1963 को इस पट्टिका को रात के अंधेरे में उपद्रवियों ने तोड़कर समुद्र में फेंक दिया। स्थिति फिर बहुत तनावपूर्ण हो गयी। स्थिति नियन्त्रण से बाहर होने पर तत्कालीन सरसंघचालक परमपूजनीय श्रीगुरुजी को आगे आना पड़ा। श्रीगुरुजी ने सरकार्यवाह एकनाथ रानाडे जी को यह कार्य सौंपा। एकनाथ जी विवेकानंद वांग्मय में आकंठ डूबे हुए थे। रामकृष्ण मिशन के स्वामी माधवानंद जी से आशीर्वाद लेकर वे जीजान से जुट गये। एकनाथ रानाडे जी द्वारा विवेकानन्द साहित्य के मंथन से एक ऐसी पुस्तक निकली, “हे हिन्दुराष्ट्र! उत्तिष्ठत! जाग्रत!” जो आज हिन्दूराष्ट्र की मार्गदर्शिका बन गयी है।


तमिलनाडु मुख्यमंत्री भक्तवत्सलम तो स्मारक के पक्ष में थे, पर केन्द्रीय संस्कृति मंत्री हुमांयू कबीर पर्यावरण आदि का बहाना बनाकर रोड़े अटका रहे थे। हुमांयू बंगाल के थे और पूरा बंगाल कन्याकुमारी में विवेकानंद स्मारक के लिए लालायित था। एकनाथ रानाडे जी ने हुमांयू कबीर के सारे हथकंडे सावर्जनिक कर दिए जिससे हुमांयू का भारी विरोध हुआ। अब हुमांयू के हाथ से स्थिति निकल गयी थी। पर जवाहरलाल नेहरु की अनुमति के बिना कुछ भी सम्भव न था, और उनका हिन्दूविरोध जगजाहिर ही था।


एकनाथ जी इसके लिए शास्त्री जी के पास गये जो स्मारक निर्माण के पक्ष में थे। शास्त्री जी के समर्थन से एकनाथ जी ने 323 सांसदों के समर्थन पत्र केवल 3 दिन में हासिल किए, जिसमें कम्युनिस्ट से लेकर मुसलमान तक शामिल थे, जो किसी न किसी तरह स्वामीजी का सम्मान करते थे। पीएम नेहरू को जब इतने सांसदों का हस्ताक्षर पत्र मिला तो वे भक्तवत्सलम जी को स्मारक की सहमति देने के लिए बाध्य हो गये। फिर भी भक्तवत्सलम और विवेकानंद समिति के बीच स्मारक के आकार, भव्यता आदि को लेकर विवाद चलता रहा।


इस बीच मिशनरियों ने मार्ग में रुकावट डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। समिति जहाँ भव्य स्मारक चाहती थी वहीं भक्तवत्स्लम केवल एक छोटे स्मारक के लिए अड़े थे। पर एकनाथ रानाडे जी सभी अवरोधों को पार करते रहे और सामंजस्य बिठाकर एक भव्य स्मारक का निर्माण करवाया, जिसमें ध्यान मंडप, भगवा ध्वज, देवीजी के श्रीचरण, ॐ की प्रतिमा शामिल हुए। मिशनरियों ने स्मारक के ठीक सामने समुद्रतट पर तीन तीन बड़े चर्चों का निर्माण कर अपनी खिसियानपट जाहिर की। पर अंत में हिन्दू समाज की विजय हुई और भारत के दक्षिणतम छोर पर बड़ी शान से ॐ अंकित भगवा ध्वज फहरा रहा है, जो संदेश दे रहा है कि “भारत हिन्दुओं का था, हिन्दुओं का है, हिन्दुओं का रहेगा।”


इसी पावन स्थल पर अब फिर से एक नरेन्द्र पहुँच रहे हैं और भगवती के चरणों में ध्यान करेंगे, इस ध्यान से भी वैसा भी अमृत निकलेगा जो 131 साल पहले स्वामी विवेकानंद के अंतर्मन में प्रकट हुआ और जिसके आधार पर क्रांतिकारियों की एक लम्बी श्रृंखला से लेकर सत्ता में हिन्दू विचारधारा के पुनर्स्थापन में स्वयं को आहूत करने वाले अनेक रत्न पैदा हुए। प्रधान सेवक के राष्ट्र को अगले 1000 वर्षों की दिशा देने वाले कार्यों का आरम्भ भगवती कन्याकुमारी के आशीर्वाद से होगा।

Tuesday, April 23, 2024

प्राकृतिक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या :-

 


प्राकृतिक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या :-


1. प्रातः (Morning) 03:00 से 05:00 –

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से फेफड़ो (Lungs) में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना उपयुक्त है । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहनेवालो का जीवन निस्तेज हो जाता है ।


2. प्रातः 05:00 से 07:00 – 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से आंत (Large Intestine) में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 07:00 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान कर लेना चाहिए । सुबह 07:00 के बाद जो मल – त्याग करते है उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।


3. प्रातः 07:00 से 09:00 – 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से आमाशय (Stomach) में होती है। यह समय भोजन के लिए उपयुक्त है । इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं।


4. प्रातः 09:00 से 11:00 –

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से तिल्ली (Spleen) में होती है। यह पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने का कार्य करता है तथा रक्त का संचित भंडार भी है। यह रोग निरोधक तंत्र का एक भाग है। मानव में तिल्ली पेट में स्थित रहता है


5. प्रातः 11:00 से दोपहर (Noon) 01:00 – 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से हृदय (Heart) में होती है। दोपहर 12:00 बजे के आस–पास मध्याह्न में आराम करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसीलिए भोजन वर्जित है। इस समय तरल पदार्थ ले सकते है। जैसे मट्ठा पी सकते है। दही खा सकते है ।


6. दोपहर 01:00 से 03:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से छोटी आँत (Small Intestine) में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है।


7. दोपहर 03:00 से 05:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से मूत्राशय (Urinary Bladder) में होती है । 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।


8. शाम (Evening) 05:00 से 07:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से गुर्दे (Kidney) में होती है। इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए। शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन न करें। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते हैं देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।

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9. रात्रि (Night) 07:00 से 09:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क (Brain) में होती है । इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है । आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टि हुई है।


10. रात्रि 09:00 से 11:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी (Spine cord) में स्थित मेरुरज्जु (केंद्रीय नाड़ी संस्‍थान का वह भाग जो कशेरुका-नाल के भीतर स्थित रहता है) में होती है। इस समय पीठ के बल विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है ।

इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है ।

यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।


11. रात्रि 11:00 से 01:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से पित्ताशय (Gall Bladder) में होती है । इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा , नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएँ बनती हैं ।


12. रात्रि 01:00 से 03:00 - 

इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से लीवर (Liver) में होती है । अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है । इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं।


नोट :-


1. ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखें जिससे ऊपर बताए भोजन के समय में खुलकर भूख लगे। जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने में पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है।


2. पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें, अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हैं।


3. आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की प्राकृतिक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा। इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ्य की प्राप्ति करा देगी।

Thursday, November 30, 2023

याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें : जो आपको हमेशा स्वस्थ और सेहतमंद रखेंगी.






याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें : जो आपको हमेशा स्वस्थ और सेहतमंद रखेंगी :-
1. बीपी: 120/80
2. पल्स: 70 - 100
3. तापमान: 36.8 - 37
4. सांस : 12-16
5. हीमोग्लोबिन: पुरुष -13.50-18
स्त्री- 11.50 - 16
6. कोलेस्ट्रॉल: 130 - 200
7. पोटेशियम: 3.50 - 5
8. सोडियम: 135 - 145
9. ट्राइग्लिसराइड्स: 220
10. शरीर में खून की मात्रा: पीसीवी 30-40%
11. शुगर लेवल: बच्चों के लिए (70-120) वयस्क: 80- 130
12. आयरन: 8-15 मिलीग्राम
13. श्वेत रक्त कोशिकाएं WBC: 4000 - 11000
14. प्लेटलेट्स: 1,50,000 - 4,00,000
15. लाल रक्त कोशिकाएं RBC: 4.50 - 6 मिलियन.
16. कैल्शियम: 8.6 -10.3 मिलीग्राम/डीएल
17. विटामिन D3: 20 - 50 एनजी/एमएल.
18. विटामिन B12: 200 - 900 पीजी/एमएल.

वरिष्ठ यानि 40/ 50/ 60 वर्ष वालों के लिए विशेष टिप्स:
1. पहला सुझाव -:
प्यास न लगे या जरूरत न हो तो भी हमेशा पानी पिएं, सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याएं और उनमें से ज्यादातर शरीर में पानी की कमी से होती हैं। 3 लीटर न्यूनतम प्रति दिन।
2. दूसरा सुझाव -:
शरीर से अधिक से अधिक काम ले, शरीर की calories burn होती रहनी चाहिए, भले ही केवल पैदल चलकर, या तैराकी या किसी भी प्रकार के खेल से।
3. तीसरा सुझाव -:
खाना कम करो...अधिक भोजन की लालसा को छोड़ दें... क्योंकि यह कभी अच्छा स्वास्थ्य नहीं देता अपने आप को वंचित न करें, लेकिन मात्रा कम करें। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आधारित खाद्य पदार्थों का अधिक प्रयोग करें।
4. चौथा सुझाव -:
जितना हो सके वाहन का प्रयोग तब तक न करें जब तक कि अत्यंत आवश्यक न हो. आप कहीं जाते हैं किराना लेने, किसी से मिलने या किसी काम के लिए अपने पैरों पर चलने की कोशिश करें। लिफ्ट, एस्केलेटर का उपयोग करने के बजाय सीढ़ियां चढ़ें।
5. पांचवां सुझाव -: क्रोध छोड़ो, चिंता छोड़ो,चीजों को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करो. विक्षोभ की स्थितियों में स्वयं को शामिल न करें, वे सभी स्वास्थ्य को कम करते हैं और आत्मा के वैभव को छीन लेते हैं। सकारात्मक लोगों से बात करें और उनकी बात सुनें।
6. छठा सुझाव -:
अपने आस-पास के लोगो से खूब मिलें जुलें हंसें बोलें!हँसे खुश रहे...... Positive रहे हर situation में खुद को mentally strong बनाएँ
7. सातवां सुझाव -:
अपने आप के लिए किसी तरह का अफ़सोस महसूस न करें, न ही किसी ऐसी चीज़ पर जिसे आप हासिल नहीं कर सके, और न ही ऐसी किसी चीज़ पर जिसे आप अपना नहीं सकते। इसे अनदेखा करें और इसे भूल जाएं।
8. आठवां सुझाव
पैसा, पद, प्रतिष्ठा, शक्ति, सुन्दरता, जाति की ठसक और प्रभाव; ये सभी चीजें हैं जो अहंकार से भर देती हैं. विनम्रता वह है जो लोगों को प्यारसे आपके करीब लाती है।
9. नौवां सुझाव -:
अगर आपके बाल सफेद हो गए हैं, तो इसका मतलब जीवन का अंत नहीं है। यह एक बेहतर जीवन की शुरुआत हो चुकी है। आशावादी बनो, याद के साथ जियो, यात्रा करो, आनंद लो। यादें बनाओ!
10. दसवां सुझाव -:
अपने से छोटों से भी प्रेम, सहानुभूति ओर अपनेपन से मिलें! कोई व्यंग्यात्मक बात न कहें! चेहरे पर मुस्कुराहट बनाकर रखें अतीत में आप चाहे कितने ही बड़े पद पर रहे हों वर्तमान में उसे भूल जाये और सबसे मिलजुलकर रहें...स्वस्थ रहो, मस्त रहो खूब हँसें और हँसाये क्योंकि हँसी फ़्री का हेल्थ टॉनिक है , इसका भरपूर उपयोग छोटी छोटी बातों का करो उपयोग रहो निरोग.

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Tuesday, September 26, 2023

Innovate to Elevate: Business Conclave 2023


Join Us at the Business Conclave of the Year!

Are you ready to embark on a journey of innovation, collaboration, and unparalleled business growth? The highly-anticipated Business Conclave 2023 is just around the corner, and you won't want to miss this extraordinary event.

Why Attend?

Our conclave brings together the brightest minds and most influential leaders from diverse industries, all under one roof. Whether you're an aspiring entrepreneur, a seasoned business owner, or an industry expert, this event offers a unique opportunity to:

1. Gain Valuable Insights: Discover the latest industry trends, cutting-edge technologies, and innovative strategies that can catapult your business to new heights.



2. Network with Industry Titans: Forge meaningful connections with top-tier executives, entrepreneurs, and thought leaders. Exchange ideas, collaborate on projects, and build partnerships that can transform your career or business.

3. Inspirational Keynote Speakers: Be inspired by renowned speakers who have achieved remarkable success in their respective fields. Learn from their experiences, failures, and triumphs, and apply their wisdom to your own journey.

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4. Interactive Workshops: Engage in hands-on workshops and breakout sessions designed to provide practical tools and actionable takeaways. Develop new skills and refine existing ones to stay ahead in the competitive business landscape.


5. Explore New Opportunities: Discover potential investment opportunities, explore the latest innovations, and gain access to resources that can fuel your business growth.

Event Details:

  • Date: 30.09.2023
  • Time: 01:00 PM to 06:00 PM
  • Venue: Bapu Shabhagar, Patna (Bihar)
  • Ticket Price: 500 (Individual), 700 (Couple), 1500 (Family)


Don't miss your chance to be a part of this transformative event. Reserve your spot today and become a part of a thriving community of entrepreneurs, leaders, and visionaries. 


How to Register:

Visit our website at https://allevents.in/patna/हेभारत-के-राम-जगो/80004034037955?aff=u7k3ha to register and secure your spot at the Business Conclave 2023. Early bird discounts are available for a limited time, so act fast!

Join us in shaping the future of business, fostering innovation, and creating lasting connections. The Business Conclave 2023 is where opportunities become realities. We can't wait to see you there!




Wednesday, September 6, 2023

हमारे देश का नाम भारतवर्ष है। यह निर्विवाद है !


 हमारे देश का नाम भारतवर्ष है। यह निर्विवाद है। संविधान बनाते समय इंडिया का मोह त्याग दिया गया होता तो फिर किसी फसाने की जरूरत नहीं थी। लेकिन भारत और इंडिया दोनों को संविधान में तो जगह मिली, प्रचलन में इंडिया ही चल रहा है। अब अचानक निमंत्रण पत्र में भारत आया तो बहस छिड़ गई। छिड़नी ही थी।

जल्दबाजी में रख दिया या योजना बनाई, 76 साल बाद भारत लौट तो आया। अच्छा होता भारतवर्ष लाते पर चलो भारत ही सही। वैसे इंडिया और भारत दो नहीं, एक ही हैं। सवाल टाइमिंग को लेकर हैं। देश जी 20 आयोजन के मुहाने पर खड़ा है, दुनियाभर से बड़ी बड़ी हस्तियां इंडिया आ रही हैं और राष्ट्रपति के निमंत्रण में इंडिया की जगह अंग्रेजी में ही भारत चला गया। मतलब अंग्रेजी को तो न छोड़ पाए, अंग्रेजी अल्फाबेट में ही bharat ले आए। अब महामहिम का निमंत्रण पत्र भारत कह रहा है और दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्ष इंडिया कहेंगे। तमाम दुनिया के मीडिया में इंडिया चलेगा, देश में कहीं भारत और कहीं इंडिया। जो भी हो, बैठे बिठाए विपक्षी टीम डॉट इंडिया वालों को प्रहार का मौका मिल गया। परिदृश्य से सनातन, रामायण, तुलसीदास जैसे मुद्दे यकायक गायब हो गए और भारत इंडिया छा गए। बंगलुरू में विपक्षी दलों के गठबंधन को इंडिया नाम राहुल गांधी ने दिया था। यह निर्णय जबरदस्त था। जैसा कि विपक्ष का अनुमान था, सत्तारूढ़ दल के लोग इंडिया कहने से बचने लगे।

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खुद प्रधानमंत्री भी बेचैन रहे और संभवतः उन्हीं की पहल पर भारत नामकरण की तैयारी हुई होगी। कल राष्ट्रपति के जी 20 निमंत्रण पत्र में जैसे ही भारत का नाम आया, राजनीति परवान चढ़ गई। विपक्ष को न केवल यह कहने का मौका मिला कि उसकी ताकत से डरकर मोदी ने संविधान में लिखा इंडिया नाम बदला है, अपितु नाम परिवर्तन से पूरी दुनिया में भी अजीब सा संदेश गया। देशों का नाम बदलना कोई नई बात नहीं। अनेक देशों ने नाम बदले हैं। कंबोडिया कंप्यूचिया हो गया, रोडेशिया जिम्बाब्वे। बर्मा म्यांमार हो गया, लंका श्रीलंका हो गया। पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश, पूर्वी जर्मनी जर्मनी। और भी न जाने कितने छोटे बड़े देशों के बदले। इंडिया तो कोई नाम ही नहीं था, आर्यावर्त भारतवर्ष था नाम। मुगलों ने हिंदुस्तान कर दिया। इसमें से पाकिस्तान निकाला तो आजाद भारत वालों ने भारतवर्ष को न लौटाकर इंडिया नाम रख दिया। तभी भारत रख देते तो इस समय की यह कवायद ही नहीं होती। खैर! संविधान में भारत भी है और इंडिया भी। आगे भी दोनों रहेंगे। देश के इतने संस्थानों के साथ इंडिया नाम जुड़ा है कि इंडिया को अलग करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इंडिया नाम अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है। विपक्षी गठबंधन का नाम यदि इंडिया है तो देशवासी उसे देश समझेंगे, यह सोचना भी मूर्खता है। यह ठीक है कि पिछले दो ढाई सौ सालों से सारी दुनिया भारत को इंडिया नाम से जानती है। आजादी के बाद एक देश के दो नामों पर एतराज जताया जाता रहा है। दुनिया में भारत के अलावा ऐसा कोई देश नहीं जिसके दो नाम हों। अब बात चल पड़ी है तो देश का नाम अधिकृत रूप से भारत हो जाए, इस पर सभी को सहमत हो जाना चाहिए।

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